मध्यप्रदेश में राज्यसभा की तीन सीटों के लिए होने वाले चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर
नई दिल्ली: मध्यप्रदेश में राज्यसभा की तीन सीटों के लिए होने वाले चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच दिलचस्प लड़ाई के चलते पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर लग गई है.. मौजूदा हालात में उनके जीत पर भी संशय उतपन हो गया है..
जानकारों के मुताबिक ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक विधायकों का वोट कांग्रेस की झोली में नहीं आया तो दिग्विजय सिंह समेत उसके अन्य दोनों उम्मीदवारों का जीतना मुश्किल हो जायेगा.
फ़िलहाल ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में शामिल हो गए है. लेकिन उनके विधायकों ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले है.. किसी भी विधायक ने बीजेपी में शामिल होने का ऐलान नहीं किया है..
अलबत्ता तमाम विधायकों की दलील है कि वे “महाराजा” के साथ है.. सिंधिया समर्थक विधायकों के इस रुख के चलते मुख्यमंत्री कमलनाथ को राजभवन का चक्कर काटना पड़ रहा है..
शुक्रवार को राज्यपाल लालजी टंडन से मुलाकात कर कमलनाथ ने गुहार लगाई है कि बेंगलुरु में बंधक बनाये गए विधायकों को बीजेपी के कब्जे से छुड़वाया जाये | उनकी मांग पर कितना अमल होगा , यह तो वक्त ही बताएगा..
फ़िलहाल तो मध्यप्रदेश में राज्यसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच दिलचस्प जंग देखने को मिलेगी | मौजूदा राजनैतिक संकट के चलते जहां कांग्रेस के कम से कम 22 विधायकों के बगावती तेवरों से कमलनाथ सरकार का भविष्य अधर में लटक गया है।
वहीं, राज्य में तीन सीटों के लिए दोनों पार्टियों ने दो-दो प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। दोनों पार्टियां विधायकों के संख्या बल के आधार पर आसानी से अपने एक-एक प्रत्याशियों को राज्यसभा भेज सकती है।
जबकि तीसरी सीट के लिए कांग्रेस को बढ़त मिलती दिख रही थी लेकिन 22 विधायकों के विधानसभा से इस्तीफे के साथ संख्याबल के इस खेल में अनिश्चितता की स्थिति पैदा हो गई है।
ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक ज्यादातर विधायकों ने इस्तीफा दे दिया है.. लेकिन उनका इस्तीफा विधानसभा अध्यक्ष ने अभी तक स्वीकार नहीं किया है..
अलबत्ता तमाम विधायकों को नोटिस जारी कर उपस्थित होने के लिए कहा है.. दरअसल तमाम विधायकों ने इस्तीफा सीधे तौर पर ना सौंपते हुए अपने सहयोगियों के जरिये विधानसभा सचिवालय को सौंपा है.. इसलिए हालात क़ानूनी दांवपेचों की ओर बढ़ रहे है..
राज्य की 228 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस विधायकों की संख्या आधिकारिक रूप से 114 है, जबकि पार्टी को चार निर्दलीय, दो बहुजन समाज पार्टी और एक विधायक का समर्थन भी हासिल है।
बेंगलुरु में डेरा डाले अगर 22 विधायकों का इस्तीफा स्वीकार कर लिया जाता है या राज्यसभा चुनाव में मतदान के दौरान वे अनुपस्थित रहते हैं तो विधानसभा में सदस्यों की संख्या 206 रह जाएगी। ऐसी स्थिति में कांग्रेस के पास सिर्फ 92 सदस्य होंगे, जबकि भाजपा के खेमें में 107 विधायक होंगे। लेकिन सिंधिया समर्थक विधायकों ने उपस्थित होकर क्रॉस वोटिंग की तो दिग्विजय सिंह के अरमानों पर पानी फिर सकता है |
हालांकि भाजपा के सिंधिया आसानी से अपनी जीत दर्ज कर लेंगे | लेकिन क्रॉस वोटिंग के खतरे के चलते कांग्रेस के दिग्विजय सिंह की जीत मुश्किल में पड़ सकती है | ये और बात है कि सिंधिया बीजेपी और अपने समर्थक कांग्रेस विधायकों की पहली पसंद है | जबकि दिग्विजय सिंह सम्भवतः अपनी कांग्रेस पार्टी की पहली पसंद है।
तीसरी सीट के लिए भाजपा के सुमेर सिंह सोलंकी और कांग्रेस के फूल सिंह बरैया के बीच मुकाबला होगा। सोलंकी की उम्मीदवारी की घोषणा मंगलवार को की गई और वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े रहे हैं। वह संघ की विभिन्न योजनाओं के तहत राज्य के आदिवासी इलाको में काम कर रहे हैं। कुल मिलाकर मध्यप्रदेश की तीनो राज्यसभा सीटों पर ज्योतिरादित्य समर्थक विधायकों का रुख दोनों ही पार्टी के उम्मीदवारों के लिए मील का पत्थर साबित होगा |