जशपुर क्षेत्र में मिले पुरातत्वविदों को प्रागैतिहासिक काल के औजार और समाधि, संरक्षित करने के लिए जिला प्रशासन ने विशेष प्रयास शुरू किए

जशपुर क्षेत्र में मिले पुरातत्वविदों को प्रागैतिहासिक काल के औजार और समाधि, संरक्षित करने के लिए जिला प्रशासन ने विशेष प्रयास शुरू किए

जशपुरनगर | छत्तीसगढ़ के उत्तर पूर्व का सीमावर्ती जिला जशपुर कई विशेषताओं को अपने आप में समेटे हुए है। प्राकृतिक सुंदरता और प्रचुर वन संपदा से भरपूर जशपुर प्रदेश का शिमला है। वहीं, जिला अपनी प्राचीन कला, संस्कृति, आदिवासी जनजीवन एवं समृद्ध परंपरा के मामले में भी पहचान रखता है। अपनी विशेष भौगोलिक स्थिति के चलते यह क्षेत्र आदि मानवों के रहवास का प्रमुख केंद्र रहा है। जशपुर जिले में आदिमानव के मौजूदगी के कई प्रमाण मिले हैं। जिले में प्रागैतिहासिक काल के अवशेष भी जगह-जगह मिलते हैं।

जिले की पहाड़ियों की कंदराओं में शैलचित्र, पाषाणकाल के औजार के अवशेष एवं महा पाषाणिक समाधियां देखने को मिलती हैं। कलेक्टर निलेशकुमार महादेव क्षीरसागर के साथ सह पुरातत्ववेद बालेश्वर कुमार बेसरा और अंशुमाल तिर्की ने आरा, रानीदाह, दुलदुला, बंगुरकेला तथा जयमरगा इलाके का दौरा कर कई प्रागैतिहासिक काल की महा पाषाणिक समाधियां, छाया स्तंभ एवं पाषाणकालीन औजार का अवलोकन एवं अध्ययन किया। पुरातत्वविद बालेश्वर बेसरा एवं अंशुमाल तिर्की ने बताया कि जिले के सभी क्षेत्रों में महा पाषाणिक समाधियां मौजूद हैं। उरांव जनजाति इस इलाके में बहुतायत में निवासरत हैं। इस जनजाति की यह प्रथा है कि व्यक्ति के मरने के बाद उसके द्वारा जीवन काल में उपयोग में लाई गई सामाग्री को भी इसके शव के साथ दफना देते हैं। पहचान के रूप में उसके सिरहाने एक पत्थर लंबवत लगा देते हैं।

जिले के आरा, बंगुरकेला, जयमरगा इलाके सहित कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां प्रागैतिहासिक काल की महा पाषाणिक समाधियां हैं। रानीदाह से लेकर लिखाआरा, मनोरा, बगीचा इलाके की पहाड़ियों एवं नदी नालों के आसपास बहुत सारे ऐसे पत्थर के टुकड़े मिलते, जिनका उपयोग आदिमानव औजार के रूप में करते रहे हैं। जिले के पुरावैभव को चिह्नित एवं संरक्षित करने के उद्देश्य से जिला प्रशासन ने विशेष प्रयास शुरू किया गया है। बीते एक सालों में पुरातत्ववेत्ताओं की टीम ने जिले का भ्रमण कर कई प्राचीन स्थलों एवं आदिमानव के रहवास के प्रमाण भी जुटाएं हैं।

आरा गांव में कई महा पाषाणिक समाधियां हैं। आरा चौक के पास भी एक महा पाषाणिक समाधि के पास गढ़े पत्थर पर मानवाकृति उकेरी गई है। रानीदाह में पंचभईया स्थल के आस-पास पाषाणकालीन औजार मिले हैं, जिसका उपयोग आदि मानव शिकार करने के लिए किया करते थे। दुलदुला में नव पाषाणकालीन दो गदा शीर्ष (रिंगस्टोन), सोकोडीपा के ग्रामीण केतार के पास मौजूद है। दुलदुला में ही मेंहिर (एकास्म पत्थर) समाधि मिली है। यहां लगी शिला की ऊंचाई लगभग 11 फीट है। बंगुरकेला में गोड़ जनजाति की समाधि (बोल्डर हिपस्टोन) मिली है। यहां एक छाया स्तंभ भी मिला ह, जिसकी ग्रामीण पूजा-अर्चना भी करते हैं। बंगुरकेला के रामरेखा मंदिर के पास भी मेंहिर मिली है, जो प्रागैतिहासिक काल की है।

The News India 24

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