‘नावा बेस्ट नार्र‘ अभियान का प्रभाव…… सुदूर ग्राम बेचा में नवजात शिशुओं को दिए गए कंबल
पहुंचविहीन गांव में स्वास्थ्य कर्मचारियों ने घर में कराया प्रसव
रायपुर 23 जनवरी 2020/ कोण्डागांव जिले में चल रहे ‘नावा बेस्ट नार्र‘ अभियान का सुखद प्रभाव विगत दिवस विकासखण्ड कोण्डागांव के सुदूर ग्राम पंचायत बेचा में देखने को मिला। इसके अनुसार ग्राम खाले पारा निवासी एक ग्रामीण महिला द्वारा विगत 19 जनवरी को स्व-निवास में एएनएम तथा मितानिन की उपस्थिति में जुड़वा बच्चों को जन्म दिया गया। यह महिला पूर्व से ही एनीमिया से ग्रस्त भी थी, ऐसे में जुड़वा बच्चों के जन्म होने पर बच्चे सामान्य से कमजोर हुए ऐसे में ग्रामीण रिवाज के अनुसार इन बच्चों को जन्म के पश्चात बाहर सुलाया गया इस स्थिति में ठंड एवं कमजोरी में इन बच्चों का बचना संभव नहीं था, परन्तु क्षेत्र के नावा बेस्ट नार्र के नोडल अधिकारी प्रकाश बागड़े को जब यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने तत्परता दिखाते हुए कंबल एवं ठंड से बचने की आवश्यक वस्तुओ की व्यवस्था उन बच्चों एवं प्रसुता मां के लिए किया। वहां पहुंचने पर उन्हें ज्ञात हुआ कि महिला रक्ताल्पता के कारण दोनो बच्चों को स्तनपान कराने एवं पालन पोषण में भी असमर्थ थी। साथ ही उस ग्रामीण महिला का यह भी कहना था कि वह दोनो में से केवल एक शिशु बालक का ही पालन पोषण करने में सक्षम है। जबकि शिशु बालिका को वह किसी को भी गोद दे देगी। ऐसे में उक्त नोडल द्वारा इस स्थिति के विषय में कलेक्टर श्री नीलकंठ टीकाम को अवगत कराया गया। उन्होंने अधिकारियों को महिला को समझाने एवं जिला प्रशासन की ओर से महिला को हर संभव मदद के लिए आश्वस्त करने को कहा एवं दुग्ध उपलब्धता के लिए डब्बा बंद दुग्ध की व्यवस्था बच्चो को प्रतिदिन उपलब्ध कराने के निर्देश दिए। इस अवसर पर क्षेत्र की आंगनबाड़ी कार्यकता श्रीमती रजबती बघेल एवं एएनएम श्रीमती ममता गढ़पाले द्वारा महिला को उक्त संबंध में महिला को समझाईश भी दी गई। साथ ही ग्रामीणों ने भी अपनी ओर से सहायता देने की बात कही।
‘नावा बेस्ट नार्र‘ से हो रहा है ग्रामीणो के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन
जिले में जिला प्रशासन द्वारा विगत वर्ष से प्रारंभ नावा बेस्ट नार्र अभियान (मेरा सुंदर गांव) कलेक्टर श्री नीलकंठ टीकाम के मार्गदर्शन में हो रहा है। जिसका मूल उद्देश्य दूरस्थ क्षेत्रों में स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण, स्वच्छता जैसी सुविधाओं की पहुंच को सुनिश्चित करना है और इस अभियान का केन्द्र बिन्दु में दूरस्थ क्षेत्र में बसे ग्रामीणों को ही लक्षित करना है, क्योंकि सीधे सरल पहुंचमार्गो पर बसे हुए ग्रामों तक शासन की योजना पहुंचाना अधिक आसान होता है, जबकि असली चुनौती तो तब है जब बीहड़ क्षेत्रो में बसे हुए ग्रामों के हितग्राहियों तक योजनाओं को पहुंचाया जाए और निश्चित ही इन मैदानी कर्मचारियों ने अपने सीमित संसाधनों के बावजूद विभागीय सेवाओं एवं सुविधाओं को इन ग्रामीणों तक पूरी तत्परता से पहुंचाया है और आज कडेनार, बेचा, कुधूर जैसे पहुंचविहीन गांवो में स्वास्थ्य सुविधाएं एवं बच्चों के पोषण की व्यवस्था बेहतर ढंग से की जा रही है।