मोदी की कृषि विरोधी नीतियों के खिलाफ 18 मार्च को पत्थलगांव में और 19 को बांकीमोंगरा में किसान पंचायत, किसान नेताओं ने कहा : नहीं बदलने देंगे किसानों के भारत को कॉर्पोरेट इंडिया में
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति और संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा मोदी सरकार की कृषि विरोधी नीतियों के खिलाफ चलाये जा रहे देशव्यापी आंदोलन के क्रम में पूरे देश में किसान पंचायतें आयोजित की जा रही है। छत्तीसगढ़ किसान सभा और छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन द्वारा संयुक्त रूप से प्रदेश में भी इन पंचायतों का आयोजन किया जा रहा है। 18 मार्च को पत्थलगांव में और 19 मार्च को कोरबा जिले के बांकीमोंगरा क्षेत्र में किसान पंचायतों का आयोजन किया जा रहा है, जिसे अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव बादल सरोज, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नंदकिशोर राज व नेहरू लकड़ा, छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के संयोजक सुदेश टीकम, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला आदि संबोधित करेंगे। इस पंचायत में शामिल होने के लिए अन्य किसान संगठनों से भी बात की जा रही है। इन पंचायतों में सैकड़ों किसानों के भाग लेने की संभावना है।
छग किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते ने बताया कि इन पंचायतों को 26 मार्च को आहूत ‘भारत बंद’ को सफल बनाने की तैयारी भी माना जा सकता है। उन्होंने कहा कि चूंकि ये कानून खेती-किसानी और किसानों के लिए डेथ वारंट है, इसलिए देश के किसान इन कानूनों की वापसी चाहते हैं और सी-2 लागत का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने का कानून चाहते हैं। उन्होंने कहा कि जो सरकार 30 रुपये का पेट्रोल-डीजल 90 रुपये में बेच रही है, वह किसानों को लाभकारी समर्थन मूल्य तक देने के लिए तैयार नहीं है। असल में संघी गिरोह “किसानों के भारत” को “कॉर्पोरेट इंडिया” में बदलना चाहता है। लेकिन देश की जनता उनके मकसद को कामयाब नहीं होने देगी।
किसान नेता ने कहा कि देश के किसानों को अपनी फसल को कहीं भी बेचने देने की स्वतंत्रता देने के नाम पर वास्तव में उन्हें अडानी-अंबानी और कॉर्पोरेट कंपनियों की गुलामी की जंजीरों में बांधा जा रहा है। इन कृषि कानूनों का दुष्परिणाम यह होने वाला है कि उनकी जमीन कॉर्पोरेट कंपनियों के हाथों चली जायेगी और फसल अडानी की निजी मंडियों में कैद हो जाएगी। इसी फसल को गरीब जनता को मनमाने भाव पर बेचकर वे अकूत मुनाफा कमाएंगे, क्योंकि अनाज की सरकारी खरीदी न होने से राशन प्रणाली भी खत्म हो जाएगी। कुल मिलाकर ये कानून देश की खाद्यान्न सुरक्षा और आत्मनिर्भरता को खत्म करते हैं।
उन्होंने कहा कि इस किसान पंचायतों में मजदूरों, छात्रों और महिलाओं से जुड़े संगठन भी पंचायत में हिस्सा लेंगे और उनकी मांगों के प्रति अपने समर्थन और एकजुटता का इजहार करेंगे। उन्होंने बताया कि किसानों का यह आंदोलन अनिश्चितकालीन है और कृषि विरोधी कानूनों की वापसी तक यह आंदोलन जारी रहेगा।