पेंशनरों के मामले में मध्यप्रदेश सरकार पर आर्थिक निर्भरता के बाध्यता की वजह से छत्तीसगढ़ सरकार को विगत 20 वर्षों में अरबों रूपयों का नुकसान उठाना पड़ा

पेंशनरों के मामले में मध्यप्रदेश सरकार पर आर्थिक निर्भरता के बाध्यता की वजह से छत्तीसगढ़ सरकार को विगत 20 वर्षों में अरबों रूपयों का नुकसान उठाना पड़ा

रायपुर।  भारतीय राज्य पेंशनर्स महासंघ के राष्ट्रीय महामंत्री और छत्तीसगढ़ राज्य संयुक्त पेंशनर्स फेडरेशन के अध्यक्ष वीरेन्द्र नामदेव ने कहा है कि पेंशनरों के मामले में मध्यप्रदेश सरकार पर आर्थिक निर्भरता के बाध्यता की वजह से छत्तीसगढ़ सरकार को विगत 20 वर्षों में अरबों रूपयों का नुकसान उठाना पड़ा है और यह नुकसान लगातार जारी है। नामदेव ने आज यहां जारी प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि मध्यप्रदेश राज्य पुनर्गठन अधिनियम की धारा 49 के तहत छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश राज्यों के बीच पेंशनरी दायित्वों का बंटवारा अभी तक नहीं हो पाया है। यह धारा इस मामले में एक बड़ी अड़चन भी बनी हुई है। हालांकि छत्तीसगढ़ के साथ ही दो अन्य राज्यों उत्तराखंड और झारखंड का निर्माण हुआ तो इन दोनों राज्यों ने धारा 49 से निजात पा ली और अपने-अपने राज्यों में उन्होंने पेंशन प्रोसेसिंग सेल भी बनवा लिया। लेकिन छत्तीसगढ़ में अब तक ऐसा नहीं हो पाया है। नामदेव ने बताया कि मध्यप्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2000 के नियमों के तहत 74 प्रतिशत राशि का भुगतान मध्यप्रदेश सरकार और 26 प्रतिशत राशि का भुगतान छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा किया जा रहा है। मध्यप्रदेश के 5 लाख और छत्तीसगढ़ के एक लाख पेंशनर, इस प्रकार कुल लगभग 6 लाख पेंशनरों के लिए इस राशि का भुगतान दोनों राज्यों को परस्पर सहमति से करना होता है। सहमति जारी होने में विलंब होने पर पेंशनरों के अनेक दावों जैसे महंगाई राहत आदि के भुगतान में भी विलंब होता है। दोनों राज्यों की सहमति जारी नहीं होने पर कोई भी भुगतान संभव नहीं हो पाता। इसी भुगतान के चक्कर में छत्तीसगढ़ सरकार को राज्य बनने के विगत 20 वर्षांे में अरबों रूपयों का नुकसान हुआ है।
नामदेव ने उदाहरण देते हुए बताया है कि प्रत्येक पेंशनर को नियमानुसार 74 प्रतिशत राशि मध्यप्रदेश द्वारा और 26 प्रतिशत राशि छत्तीसगढ़ द्वारा दिया जाना है। अर्थात 100 रुपये में 6 लाख पेंशनर को  मध्यप्रदेश 74 रूपए और इन्ही सभी पेंशनरों को 26 रूपए छत्तीसगढ़ सरकार के खजाने से देने पड़ेंगे। हिसाब लगाने पर इसमें मध्यप्रदेश को 44 करोड़ 44 लाख व्यय करना पड़ेगा और छत्तीसगढ़ सरकार को एक करोड़ 56 लाख व्यय होगा। परन्तु यदि मध्यप्रदेश अपने 5 लाख पेंशनर को 100 रूपए का भुगतान करता है उसे 5 करोड़ और छत्तीसगढ़ सरकार अपने एक लाख पेंशनरों के केवल एक करोड़ खर्च करने होंगे। इस तरह केवल 100 रुपये के भुगतान मेेें ही छत्तीसगढ़ शासन को 56 लाख रुपए का नुकसान हर महीने हो रहा है। इसीलिए मध्यप्रदेश सरकार जानबूझकर 20 साल से पेंशनरी दायित्व को टालते आ रही है।

जारी विज्ञप्ति में नामदेव ने आगे बताया है कि दोनो राज्यो के बीच पेंशनरी दायित्व का बंटवारा नहीं होने से पेंशनरों को मिलनेवाली आर्थिक मामले मध्यप्रदेश के सहमति के बिना लटकी हुई है,चाहे महंगाई राहत का मामला हो या छठवें और सातवें वेतनमानों का एरियर हो अथवा सेवानिवृत्त उपादान की रकम, ये सभी दोनो राज्यों में आपसी सहमति नही होने से भुगतान नही हो रहा है। इसी तरह पेंशनरों प्रकरण में कोष लेखा एवं पेंशन से पीपीओ जारी होने के बाद अंतिम जांच के लिये सेंट्रल पेंशन प्रोसेसिंग सेल स्टेट बैंक गोविंदपुरा भोपाल शाखा को भेजा जाता है, जहाँ दोनो राज्यों के प्रकरणों की अधिकता होने के कारण कई महीनों के बाद जांच प्रक्रिया पूरी होती है और पेंशन नही मिलने में देरी से आर्थिक और सामाजिक शोषण के शिकार बन रहे हैं। उन्होंने कहा कि पेंशनरों की समस्याओं पर पक्ष और विपक्ष दोनो की बेरुखी है, शासन के जिम्मेदार पदाधिकारियों और प्रशासनिक अधिकारियों से लगातार चर्चा, ज्ञापन और धरना,प्रदर्शन आदि के माध्यम अवगत कराने बाद भी स्थिति जस के तस बनी हुई है।

नामदेव ने कहा कि धारा 49 को हटाकर पेंशनरी दायित्व का बंटवारा आपस मे नही होने के कारण नियमों के तहत 74 प्रतिशत राशि का भुगतान मध्यप्रदेश सरकार को और 26 प्रतिशत राशि का भुगतान छत्तीसगढ़ सरकार को मध्यप्रदेश के 05 लाख और छत्तीसगढ़ के 1 लाख पेंशनरों इस तरह कुल 6 लाख से अधिक पेंशनर और परिवारिक पेंशनरों मिलकर करना होता है इसके लिए दोनो राज्य सरकारों में आपसी सहमति नही होने पर कोई भी भुगतान करना सम्भव नहीं हैं और इसी भुगतान के खेल में छत्तीसगढ़ सरकार को इन 20 वर्षो में अरबो रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है। जो लगातार जारी हैं। इसी तरह सेन्ट्रल पेंशन प्रॉसेसिंग सेल स्टेट बैंक गोविदपुरा भोपाल में दोनो ही राज्य के पेंशन प्रकरणों का अंतिम निराकरण करने का काम होता हैं और एक अकेले शाखा में दोनो राज्यों के काम निपटाने में अनावश्यक देरी होना स्वाभाविक है,इसलिए छत्तीसगढ़ राज्य में पृथक सेल की स्थापना की बहुत जरूरत पर भी चिन्ता नहीं है।

The News India 24

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