छत्तीसगढ़ी काफी हाउस गढ़कलेवा
इंडियन काफी हाउस की तर्ज पर छत्तीसगढ़ के हर जिले में नई सरकार द्वारा गढ़कलेवा प्रारंभ किए गए हैं। गढ़कलेवा में न सिर्फ छत्तीसगढ़ के पारंपरिक व्यंजन उपलब्ध हैं बल्कि देवभोग के सभी उत्पादों को रखने की भी तैयारी है। राज्य सरकार द्वारा लगातार इस गढ़कलेवा को प्रोत्साहित करने के कारण यह एक नए ब्रांड के रूप में स्थापित हो गया है। राज्य के विशिष्ट जनों और बाहर से आने वाले अतिथियों को जल्द ही इन केन्द्रों से परंम्परागत व्यंजन परोसे जाएंगे। नई दिल्ली के छत्तीसगढ़ भवन में भी छत्तीसगढ़ के परम्परागत व्यंजन परोसे जा रहे हैं।
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के मंशा के अनुरूप छत्तीसगढ़ के लोक कला और संस्कृति को जहां बढ़ावा दिया जा रहा है। गढ़कलेवा को नया लुक देने के लिए हस्तशिल्प विकास बोर्ड द्वारा इन केन्द्रों को आकर्षक और छत्तीसगढ़ी परम्परा के अनुरूप बांस शिल्प फर्नीचर की नई श्रंृखला जारी की गई है। छत्तीसगढ़ की पारंपरिक परिवेश और साज सज्जा से जिलों में प्रांरभ हो रहे इन केन्द्रों का आकर्षण और भी बढ़ गया है। रायपुर के महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय परिसर में छत्तीसगढ़ी खानपान एवं व्यंजन विक्रय केन्द्र संचालित है। यह रायपुर शहर के अन्य खान-पान केन्द्रों से प्रतिस्पर्धा करते हुए, गुणवत्ता और मानकों पर खरा उतरा है, जिससे पारंपरिक और स्वास्थ्यकर, स्वादिष्ट खान-पान को बल मिला है।
छत्तीसगढ़ की संस्कृति में खान-पान की विशिष्ट और दुर्लभ परंपराए हैं, जो हर प्रहर, बेला, मौसम और तीज त्यौहार के अनुकूल सामने आती है। वनवासी-जनजातीय समाज का कलेवा मुख्यतः प्राकृतिक वनोपज पर आधारित है, तो जनपदीय संस्कृति के वाहकों के कलेवा में रोचक रसपूर्ण विविधता है। मांगलिक और गैरमांगलिक दोनों प्रसंग के व्यंजनों की अपार श्रृंखला है। ये व्यंजन भुने हुए, भाप से पकाये, तेल में तले और ये तीनों के बगैर भी तैयार होते हैं। छत्तीसगढ़ के कुछ प्रमुख पकवानों में चीला, बेसन चीला, गुरहा चीला, फरा, मुठिया, धुसका, चंाउर रोटी, चंाउर पातर रोटी, खुपुर्री रोटी, बफौरी, चंवसेला, बरा, पताल चटनी, देहरउरी, अईरसा, दुधफरा, पकवा, ठेठरी, खुरमी, बिड़िया, पिड़िया, पपची, पूरन लाडू, करी लाडू, बुंदी लाड़ू, मुर्रा लाड़ू, लाई लाड़ू शामिल है।
राज्य शासन द्वारा छत्तीसगढ़ी खान-पान एवं व्यंजन विक्रय केन्द्र गढ़कलेवा छत्तीसगढ़ के सभी जिला मुख्यालयों में वित्तीय वर्ष 2020-21 में प्रारंभ करने का निर्णय लिया गया और इसके अतर्गत स्थानीय महिला स्वसहायता समूहों को प्रशिक्षित कर तथा गढ़कलेवा के लिए स्थल, शेड़ आदि तैयार कर संचालन हेतु दिया जाएगा। जिससे समूह के गरीब परिवारों को जीवन यापन के लिए स्वरोजगार प्राप्त हो सके और आत्म निर्भर बन स