गौतम बुद्ध भारतीय कैसे हुए? : नेपाल
10 अगस्त 2020| पिछले दिनों राम के जन्मस्थान को लेकर नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के बयान से विवाद खड़ा हो गया था और अब विवाद की कड़ी में ताज़ा नाम गौतम बुद्ध का है. शनिवार को भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के एक कार्यक्रम में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था- ऐसे कौन से महानतम भारतीय हैं, जिन्हें आप याद रख सकते हैं. तो मैं कहूँगा एक हैं गौतम बुद्ध और दूसरे महात्मा गांधी. बस फिर क्या था नया विवाद खड़ा हो गया. नेपाल के विदेश मंत्रालय ने इस पर बयान जारी कर कहा कि ऐतिहासिक और पुरातात्विक साक्ष्यों से यह एक स्थापित और निर्विवाद तथ्य है कि गौतम बुद्ध का जन्म नेपाल के लुम्बिनी में हुआ था. बुद्ध का जन्मस्थान लुम्बिनी बौद्ध धर्म के उत्पत्ति का स्थान है, जो यूनेस्को की विश्व धरोहर में से एक है. नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल ने कहा कि गौतम बुद्ध के बारे में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर का बयान आपत्तिजनक है. फ़ेसबुक पर जारी अपने बयान में माधव कुमार नेपाल ने लिखा है- भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर का नेपाल के लुम्बिनी में जन्मे गौतम बुद्ध पर बयान अवास्तविक और आपत्तिजनक है. भारतीय नेताओं की ओर से व्यक्त असंवेदनशील बयान और ग़लतफ़हमियों का दोनों देशों के बीच संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. मैं नेपाल सरकार से अनुरोध करता हूँ कि वे औपचारिक रूप से भारत से बात करे. हालांकि भारतीय विदेश मंत्रालय ने बाद में एक बयान जारी करके इस विवाद को ठंडा करने की कोशिश की. भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा- विदेश मंत्री साझा बौद्ध विरासत का ज़िक्र कर रहे थे. इसमें कोई संदेह नहीं है कि गौतम बुद्ध का जन्म लुम्बिनी में हुआ था, जो नेपाल में है. हालांकि विदेश मंत्रालय ने ये स्पष्ट नहीं किया कि विदेश मंत्री एस जयशंकर ने गौतम बुद्ध को भारतीय क्यों कहा. नेपाल और भारत के बीच पिछले कुछ महीनों से तनाव चल रहा है. नेपाल ने इस साल मई में अपना नया नक्शा जारी किया था, जिसमें लिपुलेख, लिम्पियाधुरा और कालापानी को अपना इलाक़ा दिखाया था. ये तीनों इलाक़े अभी भारत में हैं लेकिन नेपाल दावा करता है कि ये उसका इलाक़ा है. जबकि भारत इसे अपना इलाक़ा मानता है. नेपाल के विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में 2004 के भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेपाल दौरे का भी ज़िक्र किया है, जिसमें नरेंद्र मोदी ने कहा था कि नेपाल वो देश हैं, जहाँ दुनिया भर में शांति के दूत गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था. नेपाली विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में आगे कहा है- ये सच है कि बौद्ध धर्म नेपाल से दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में फैला. ये विषय विवाद का विषय नहीं और न ही इस पर कोई संदेह है. इसलिए ये बहस का मुद्दा नहीं हो सकता. पूरा अंतरराष्ट्रीय समुदाय इससे अवगत है. नेपाल के पीएम ओली को विलेन बनाकर भारतीय मीडिया बड़ी भूल कर रहा है? नेपाल के पीएम ओली अयोध्या और राम पर अपने ही देश में घिरे इसी मुद्दे पर नेपाल के पूर्व विदेश सचिव मधुरमन आचार्य ने ट्वीट कर लिखा है- क़रीब 2270 साल पहले भारतीय सम्राट अशोक ने बुद्ध के जन्मस्थान को मान्यता देते हुए लुम्बिनी ने एक स्तंभ का निर्माण कराया था. ये स्मारक किसी भी उस दावे से बड़ा है, जिसमें कहा जा रहा है कि बुद्ध भारतीय थे. नेपाली कांग्रेस के प्रवक्ता बिश्वा प्रकाश शर्मा ने भी भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर के दावे पर सवाल उठाया है. उन्होंने कहा है कि भगवान बुद्ध का जन्म नेपाल में ही हुआ था और उन्हें भारतीय विदेश मंत्री के बयान पर सख़्त आपत्ति है और ये ऐतिहासिक तथ्यों के ख़िलाफ़ है. पिछले दिनों कवि भानुभक्त के 207वें जन्मदिन पर हुए समारोह में नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली ने राम के जन्मस्थान को लेकर एक बयान दिया था, जिसे लेकर काफ़ी विवाद हो गया था. उन्होंने कहा था- असली अयोध्या नेपाल के बीरगंज के पास एक गाँव है, जहाँ भगवान राम का जन्म हुआ था. हमें सांस्कृतिक रूप से दबाया गया है. तथ्यों से छेड़छाड़ की गई है. हम अब भी मानते हैं कि हमने भारतीय राजकुमार राम को सीता दी थी. लेकिन हमने भारत की अयोध्या के राजकुमार को सीता नहीं दी थी. असली अयोध्या बीरगंज के पश्चिम में स्थित एक गांव है, न कि वह जिसे अब बनाया गया है.” ओली का ये बयान आते ही न केवल भारत में बल्कि नेपाल में भी तीव्र प्रतिक्रिया हुई. भारत में अयोध्या के संतों ने ओली के बयान पर नाराज़गी जताई. बाद में नेपाली विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा कि प्रधानमंत्री ओली किसी की भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचाना चाहते थे. नेपाल के विदेश मंत्रालय ने उस समय कहा था- ये टिप्पणियाँ किसी राजनीतिक मुद्दे से जुड़ी नहीं थीं और किसी की भावनाएँ आहत करने का इरादा नहीं था.” आगे कहा गया है, “श्री राम और उनसे संबंधित स्थानों को लेकर कई मत और संदर्भ हैं. प्रधानमंत्री श्री राम, अयोध्या और इनसे जुड़े विभिन्न स्थानों को लेकर तथ्यों की जानकारी के लिए केवल उस विशाल सांस्कृतिक भूगोल के अध्ययन और शोध के महत्व का उल्लेख कर रहे थे जिसे रामायण प्रदर्शित करती है. इसका मतलब अयोध्या और सांस्कृतिक मूल्यों के महत्व को कम करना नहीं था|