वसुंधरा राजे कभी भी ऐलान कर सकती है अपने 46 विधायकों के bjp छोड़ने का
जयपुर। कांग्रेस ने अपने विधायको की जहा बाडेबंदी की है तो अब बीजेपी भी दो दिन के लिये अपने विधायकों की बाडेबंदी सुनिश्चित कर रही है कारण वसुंधरा की नाराजगी है वसुंधरा कभी भी बीजेपी छोडने का ऐलान कर सकती है ऐसा भारतीय जनता पार्टी को डर सता रहा है। राजस्थान की सियासत में कांग्रेस ही नहीं बीजेपी में भी जोरदार घमासान चल रहा है. इस घमासान के केंद्र में हैं पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे. वसुंधरा राजे के गुरूवार को राजस्थान से दिल्ली पहुंचते ही सियासी चर्चाओं का दौर चल पड़ा है.
इस बार राजे की नाराजगी की वजह है राजस्थान बीजेपी की ओर से जारी की गई प्रदेश पदाधिकारियों की ताज़ा सूची. बताया गया है कि इस सूची में वसुधरा के क़रीबियों को बहुत कम जगह मिली है और विरोधियों को बड़े पदों पर नियुक्त किया गया है. जयपुर के राजघराने की पूर्व राजकुमारी दिया कुमारी और विधायक मदन दिलावर को प्रदेश महामंत्री बनाए जाने से राजे ख़ुश नहीं हैं. राजस्थान की राजनीति में यह कहा जा रहा है कि बीजेपी हाईकमान दिया कुमारी को राजे का विकल्प बनाना चाहता है और इस बात को राजे बख़ूबी जानती हैं. यहां दिलचस्प तथ्य यह है कि राजे ने ही दिया कुमारी को ही बीजेपी की सदस्यता दिलाई थी. दिया पिछले चुनाव में राजसंमद से सांसद चुनी गई थीं. राजे ने केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को राजस्थान बीजेपी का अध्यक्ष बनाने के मुद्दे पर मोदी और अमित शाह तक की नहीं चलने दी थी. मोदी और शाह शेखावत को प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहते थे लेकिन वसुंधरा इसके विरोध में थीं और अंत में शेखावत प्रदेश अध्यक्ष नहीं बन सके थे. इससे पहले 2018 के विधानसभा चुनाव के मौके़ पर टिकटों के वितरण में भी वसुंधरा राजे की चली थी और उन्होंने हाईकमान यानी मोदी-शाह को झुकने को मजबूर कर दिया था.
पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार के बाद पार्टी हाईकमान ने उन्हें राजस्थान से हटाकर केंद्र की राजनीति में लाने की कोशिश करते हुए राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया था. लेकिन वसुंधरा राजस्थान का खूंटा छोड़ना नहीं चाहतीं. तब नेता विपक्ष के पद पर वसुंधरा की दावेदारी को नकारते हुए पार्टी हाईकमान ने गुलाब चंद कटारिया को इस पद पर बिठाया था और राजे के विरोधी माने जाने वाले राजेंद्र राठौड़ को उप नेता बनाया था. राजस्थान की राजनीति में कहा जाता है कि शेखावत, प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया और विधानसभा में उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ का एक गुट है और दूसरा गुट वसुंधरा राजे का है. गहलोत सरकार को गिराने की पुरजोर कोशिशों में जुटे पहले गुट को इसमें सफलता नहीं मिल पा रही है. बताया जाता है कि पूनिया और शेखावत ने यह बात बीजेपी हाईकमान तक पहुंचाई है कि राजे गहलोत की सरकार को नहीं गिरने देना चाहतीं. लेकिन दिक्कत बीजेपी हाईकमान के लिए भी बहुत है क्योंकि राजस्थान में अधिकांश विधायक और सांसद वसुंधरा के खेमे के हैं. राजस्थान में बीजेपी के 72 में से 47 विधायक वसुंधरा खेमे के बताये जाते हैं. ऐसे में हाईकमान राजे को साथ लिए बिना कोई रिस्क नहीं ले सकता. पिछले साल जब सतीश पूनिया को राजस्थान बीजेपी का नया अध्यक्ष बनाया गया था तो वसुंधरा राजे उनके स्वागत कार्यक्रमों से दूर रही थीं. पूनिया को राष्ट्रीय स्वयं सेवक की पसंद और राजे का धुर विरोधी माना जाता है।
फिलहाल वसुंधरा के साथ 46 विधायक बताये जा रहे है अगर वो 46 विधायको से पार्टी से अलग होती है तो ये बीजेपी को ले सबसे बडा झटका हो सकता हैं।