दिल्ली हाई कोर्ट ने पहचान पत्र नहीं होने की वजह से कोरोना टेस्ट नहीं करा पा रहे मानसिक रोगियों को दी बड़ी राहत
दिल्ली हाई कोर्ट ने पहचान पत्र नहीं होने की वजह से कोरोना टेस्ट नहीं करा पा रहे मानसिक रोगियों को बड़ी राहत दी है. जिसके तहत अब डमी नंबर 9999999999 को कॉन्टैक्ट नंबर और अस्पताल या लैब के पते को घर का पता मानकर उनकी भी जांच और इलाज हो सकेगी. हाई कोर्ट ने कहा है कि समाज के सबसे निचले पायदान पर दयनीय स्थिति में रह रहे बेघर मानसिक रोगियों को भी कोविड-19 की वही सुविधाएं मिलनीं चाहिए, जो आम इंसानों को मिल रही हैं.
हाई कोर्ट ने आईसीएमआर को याचिकाकर्ता की उस मांग पर भी विचार करने को कहा है जिसमें एरिया के पुलिस अधिकारी का नंबर बेघर मानसिक रूप से बीमार लोगों के कॉन्टैक्ट नम्बर के रूप में देने को कहा गया था. दरअसल हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार और आईसीएमआर को दिल्ली में लाखों बेघर मानसिक रूप से बीमार लोगों का कोविड-19 टेस्ट और उनका इलाज कैसे हो, इसको लेकर समाधान ढूंढ़ने को कहा था. क्योंकि बिना पहचान पत्र के मानसिक रोगियों का इलाज नहीं हो पा रहा.
हाई कोर्ट का सरकार से सवाल था कि जब इन बेघर लोगों के पास अपना फोटो तक नहीं है तो ये लोग कोविड काल में अपना पहचान पत्र कैसे बनवाएंगे?
बता दें, आईसीएमआर की गाइडलाइंस के मुताबिक कोविड-19 के टेस्ट और इलाज के लिए हर मरीज को पहचान पत्र देना अनिवार्य है. इस गाइडलाइन के चलते मानसिक रूप से बीमार बेघर सड़क पर पड़े लोगों का दिल्ली के अस्पतालों में कोविड टेस्ट और इलाज संभव नहीं हो पा रहा है.
हालांकि कोर्ट के आदेश और आईसीएमआर द्वारा डमी नंबर को इस्तेमाल करने की सहमति के बाद अब दिल्ली की सड़कों पर पड़े कोविड संक्रमित बेघर मानसिक रोगियों का भी इलाज हो पाएगा. आज हुई सुनवाई के दौरान आईसीएमआर ने राज्य सरकार को इन लोगों के लिए कैंप लगाने का भी सुझाव दिया है.
एक अनुमान के मुताबिक दिल्ली में बेघर मानसिक रोगियों की संख्या दो लाख के आसपास हैं. मेंटल हेल्थकेयर एक्ट के तहत भी मानसिक रोगियों की देखभाल उस राज्य की सरकार की जिम्मेदारी होती है. इसके अलावा पर्सन विद डिसेबिलिटी एक्ट के तहत भी मानसिक बीमार लोगों की जिम्मेदारी डिजास्टर मैनेजमेंट स्ट्रेटजी का हिस्सा है।