रमेश वर्ल्यानी ने मोदी सरकार द्वारा देश के प्रमुख सरकारी बैंकों का परस्पर विलय कर चार बड़े बैंक बनाए जाने पर लगाये प्रश्नचिन्ह
रायपुर 24 अप्रैल 2020। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ प्रवक्ता एवं पूर्व विधायक रमेश वर्ल्यानी ने मोदी सरकार द्वारा देश के प्रमुख सरकारी बैंकों का परस्पर विलय कर चार बड़े बैंक बनाए जाने पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए कहा कि केंद्र सरकार का यह कथन सच्चाई से परे है कि यह कदम बैंकों का विश्वस्तरीय बनाने के लिए उठाया गया है, जबकि वास्तविकता यह है कि इस विलय के बावजूद कोई भी बैंक विश्व की 50 प्रमुख बैंकों की श्रेणी में स्थान प्राप्त नहीं कर पाई है। नोटबंदी और जीएसटी के समान ही यह फैसला बिना सोचे- समझे जल्दबाजी में लिया गया है। उन्होंने कहा कि बैंकों को अपनी पूंजी का निश्चित प्रतिशत ही लोन देने का अधिकार था, अब बड़ी बैंक बनने से उनको बड़े लोन देने का अधिकार होगा और उसका लाभ पूंजी पतियों एवं कारपोरेट घरानों को मिलेगा जिन्हें अधिक से अधिक लोन की जरूरत पड़ती है। वैसे भी लोन डिफॉल्ट की श्रेणी में हमारे देश में कारपोरेट डिफाल्टर की सर्वाधिक है। कमजोर एवं मध्यम वर्ग के लोगों को लोन देने में बड़े बैंकों की भूमिका पूर्व की भांति निराशाजनक रहने वाली है।
प्रवक्ता श्री वर्ल्यानी ने कहा कि बैंकों के विलय के पीछे सबसे बड़ा कारण एनपीए खातों की बड़ी राशि है। मोदी सरकार के कार्यकाल में एनपीए बढ़कर छह लाख करोड़ पहुंच गया था और संबंधित बैंकों की स्थिति कर्ज के बोझ तले बंद होने की कगार पर पहुंच जाती जिन्हें छुपाने हेतु बैंकों का विलय कर दिया गया।
उन्होंने आगे कहा कि केंद्र सरकार का कथन है कि इस विलय से बैंकों के खर्चों में कटौती होगी। लेकिन एक सर्विस सेक्टर में खर्चों में कटौती का सीधा मतलब रोजगार का घटना होता है। सरकार बैंकों में कार्यरत कर्मचारियों की बढ़ी संख्या को वीआरएस लेने मजबूर करेगी और नई भर्तियों पर रोक लगा देगी। सरकार के इस कदम से देश के नौजवान, बैंकों में रोजगार पाने के अवसरों से वंचित हो जाएंगे। बैंक यूनियनों ने भी इसका विरोध करते हुए कहा है कि बैंकिंग सेक्टर्स की समस्याओं का समाधान बैंकों के विलय से नहीं होगा।