तिहाड़ जेल प्रशासन का कहना है कि दोषियों की ओर से जेल में कमाए गए पैसे को उनके परिजनों को दिया जाएगा। इसके अलावा उनके कपड़े और सभी सामान भी परिजनों को दिए जाएंगे। 7 साल 3 महीने और तीन दिन पहले यानी 16 दिसंबर 2012 को देश की राजधानी दिल्ली में हुई इस वीभत्स घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। न्याय की मांग को लेकर पब्लिक सड़कों पर उतर आई थी। निर्भया की मां आशा देवी ने लंबे समय तक इंसाफ के लिए लड़ाई लड़ी। आज जब दोषियों को फांसी दी गई तो उन्होंने ऐलान किया कि 20 मार्च को वह निर्भया दिवस के रूप में मनाएंगी। उनका कहना है कि वह अब देश की दूसरी बेटियों के लिए लड़ाई लड़ेंगी।
निर्भया को इंसाफ मिलने में 7 साल का लंबा वक्त लग गया। 4 दरिंदों को फांसी के फंदे तक पहुंचाने निर्भया की मां को लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी। वो16 दिसंबर 2012 की खौफनाक रात थी। 23 साल की फिजियोथिरेपिस्ट निर्भया अपने एक दोस्त के साथ साउथ दिल्ली के एक थियेटर से ‘Life Of Pi’ फिल्म देखकर लौट रही थी। दोनों मुनिरका में एक ऑटो-रिक्शा का इंतजार कर रहे थे। दोनों को व्दारका जाना था, जहां उनका घर था। तभी वहां एक ऑफ-ड्यूटी चार्टर बस आती है। उसमें ड्राइवर समेत कुल छह लोग होते हैं। निर्भया और उसके दोस्त को बैठने के लिए पूछा जाता है। बस चल पड़ती है मगर गलत दिशा में। दोनों को एहसास होता है कि कुछ गलत है क्योंकि बस के दरवाजे बड़ी कड़ाई से बंद किए गए थे।
निर्भया के दोस्त ने विरोध किया तो उसपर बस में मौजूद 6 लोग चिल्ला पड़े। उसने विरोध किया तो लड़ाई हो गई। वो सब शराब के नशे में धुत थे और निर्भया के साथ बदतमीजी करने लगे। निर्भया के दोस्त पर लोहे की रॉड से वार कर उसे बेहोश कर दिया गया। उसके बेहोश होते ही, वो दरिंदे निर्भया को चलती बस के पिछले हिस्से में ले गए और बारी-बारी से उसका रेप किया। उनमें से एक अपराधी जो नाबालिग था, उसने जंग लगा लोहे का एक सरिया निर्भया के प्राइवेट पार्ट में डाल दिया। निर्भया की आंतें फट गई थीं। मेडिकल रिपोर्ट बताती है कि उसके शरीर के निचले भाग में सेप्टिक था। निर्भया के साथ दरिंदगी की हदें पार करने के बाद, अपराधियों ने उसे और उसके दोस्त को चलती बस से फेंक दिया। यहां तक कि निर्भया के ऊपर से बस चढ़ाने की भी कोशिश हुई मगर उसके घायल दोस्त ने उसे किनारे खींच लिया। वहां से गुजरने वाले एक शख्स को दोनों अधमरी हालत में मिले। दिल्ली पुलिस को खबर की गई।
सफदरजंग अस्पताल के डॉक्टरों ने जब निर्भया को देखा तो उसके शरीर में सिर्फ पांच फीसदी आंतें बची थीं। ये घटना इतनी वीभत्स थी कि देशभर का गुस्सा फूट पड़ा। दिल्ली की सड़कों पर हजारों की भीड़ उतर आई। निर्भया की हालत बिगड़ती चली गई। उसे सिंगापुर के एक अस्पताल में शिफ्ट किया गया जहां वह 29 दिसंबर की रात जिंदगी की जंग हार गई। उसके दोस्त की पसलियां टूटी थीं मगर जान बच गई।
सभी आरोपियों को जल्द पकड़ लिया गया। एक नाबालिग के अलावा, राम सिंह नाम का बस ड्राइवर था जिसने ट्रायल के दौरान तिहाड़ जेल में सुसाइड कर लिया। बाकी चारों आरोपियों- मुकेश सिंह, विनय गुप्ता, पवन गुप्ता और अक्षय ठाकुर का ट्रायल पूरा हुआ और उन्हें 2013 में मौत की सजा सुनाई गई। सुप्रीम कोर्ट ने भी फांसी की सजा बरकरार रखी। दोषियों के सभी कानूनी उपचार खत्म होने के बाद उन्हें फांसी हुई।