अमर शहीद वीर बुद्धू भगत की 228वीं जयंती पर विशेष
रायपुर, 17 फरवरी 2020/ अमर शहीद वीर बुद्धु भगत का जन्म रांची जिले के चान्हों प्रखंड अंतर्गत ग्राम सिलागांई में 17 फरवरी 1792 को हुआ था। उरांव परिवार मंे जन्में बुद्धू भगत जबरदस्त संगठनकर्ता और कुशल तीरंदाज थे। उनकी शारीरिक क्षमता और युद्ध कौशल कला ने क्रांतिकारियों का अग्रणी नेता बना दिया।
अमर शहीद बुद्धू भगत का मानना था कि झारखण्ड की निरीह जनता को अंग्रेजों का प्रशासनिक हस्तक्षेप से मुक्त कराना जरूरी है। कर (लगान) लेने के लिए अंग्रेज ओछी हरकत करते हैं। अंग्रेजों के विरूद्ध मुंडा, मानकी, पड़हा, पट्टी परंपरागत आदिवासी गांव-गांव में संगठन बना लिया। संगठन में बुद्धू भगत का जबरदस्त प्रभाव था। संगठन क्षेत्र सिल्ली, टिक्कू, टोरी, चोरेया, पिठोरिया, लोहरदगा, पलामू तक फैला था। इन क्षेत्रों में संगठन से जुड़े लोग अंग्रेजों के लिए ये आतंक का पर्याय बन चुके थे। अंग्रेजी हुकुमत ने इनकेे एक-एक हरकत की सूचना एकत्र करने के लिए अनेक जासूस बहाल कर रखे थे। जहां भी इनका कार्यक्रम होता और पूरा गांव घेर लिया जाता था। किन्तु अंग्रेजी हुकुमत के लिए बुद्धू भगत को पकड़ना आसान नहीं था।
परेशान होकर अंग्रेजी हुकुमत के संयुक्त आयुक्त ने 50 वीं नेटिव इंफेंट्री के कमांडिंग ऑफिसर को 8 फरवरी 1832 में लिखा था कि बुद्धू भगत को जिन्दा या मुर्दा पकड़ा जाए। लेकिन बुद्धू भगत की युद्धकला के आगे विलकिल्सन को भागकर रामगढ़ में शरण लेनी पड़ी थी। परंपरागत हथियार ही इनके साधन थे। पत्थरों की वर्षा कहां से और किधर से होती, अंग्रेज समझ नहीं पाते थे। अंततः बुद्धू भगत को पकड़ने के लिए एक हजार का पुरस्कार रखा गया।
पुरस्कार का कोई असर उनके शुभचिंतक ग्रामीणों पर नहीं पड़ा। इसी समय उत्तर और मध्य छोटानागपुर परगनाओं में सैन्य प्रभार कैप्टन इम्पे को सौंपा गया। बनारस से नई कुमुक बुलाई गई, घुड़सवारों की संख्या में वृद्धि की गयी।
एक बार टिक्कु में बुद्धू भगत के कार्यक्रम की सूचना अधिकारियों को मिली। पूरा गांव घेर लिया गया। बुद्धू भगत के नहीं मिलने पर इन सभी आदिवासियों को जानवरों की तरह हांक कर चोरेया लाया गया। यह घटना 10 फरवरी 1832 की है। कहा जाता है घुड़सवार इन चार हजार आदिवासियों पर कहर बरसाते हुए हांके जा रहे थे कि अचानक एक भयंकर तूफान आया और सभी अंग्रेज सिपाहियों के घोड़े बेकाबू हो गए। सैनिक बिखर गए। आदिवासी मुक्त हो गए। कैप्टन इम्पे की घवड़ाहट बढ़ गयी थी।
इस विफलता से विक्ष्प्ति होकर इम्पे ने 13 फरवरी को सिल्ली गांव को सैकड़ों बंदूकधारियों सिपाहियों के साथ घेर लिया। गांव के लोग बुधु भगत की सुरक्षा के लिए चिंतित हो उठे। लगभग 300 आदिवासियों ने बुद्धू भगत को मानव-प्राचीर में छिपा लिया था किन्तु गोलियों से सभी की क्रूर हत्या कर दी गयी।
29 फरवरी 1832 के ’’बंगाल हरकारा’’ नामक पत्रिका में यह लिखा मिलता है कि कैप्टन इम्पे ने अपनी सफलता का प्रदर्शन एवं आदिवासियों में भय उत्पन्न करने के लिए बुद्धू भगत, उनके छोटे भाई और भतीजों के कटे हुए सिर को ट्रे में सजाकर पिठोरयिा स्थित एक शिविर में कमिश्नर को भेंट दिया था।