कानपुर:युवाओं के लिए वेलेंटाइन-डे के रूप में भले उत्सवी जोश लेकर आता है लेकिन बेहमई के लिए इस तारीख के मायने कुछ अलग ही हैं. वहीं यमुना किनारे बसे बेहमई में ठीक आज से 39 साल पहले 14 फरवरी 1981 की शाम जब फूलन देवी ने गिरोह के साथ हमला बोल दिया था जंहा शाम कई घरों में हमेशा के लिए बड़ा अंधेरा पैदा कर गया था. वहीं उस वक्त कोई गिरोह जब भी यमुना नदी पार करके जालौन या कानपुर की सीमा में प्रवेश करता था तो अक्सर बेहमई से होकर ही निकलता था.
वहीं डकैत खान-पान, रसद समेत तमाम प्रकार की जरूरतें यहीं के ग्रामीणों से पूरी करवाते थे. लालाराम गिरोह में जब कुसुमा नाइन और फूलन देवी शामिल थी, तब यहां आना – जाना खूब रहता था . उस वक्त गिरोह में विक्रम मल्लाह भी शामिल था. लेकिन ग्रामीणों द्वारा सभी के चेहरे पहचाने जाने लगे थे. बाबू सिंह गुर्जर की हत्या के बाद जब विक्रम मल्लाह की हत्या की गई तो गिरोहों के बीच जातीय खाई बढ़ गई थी. विक्रम को श्रीराम – लालाराम ने एक दिन धोखे से सोते समय मार डाला था. फूलन के साथ कई प्रकार से दुर्व्यवहार हुआ था. आपकी जानकारी के लिए हम आपको बता दें कि गांव में किसी ने सोचा भी नहीं था कि आज बेहमई की धरती खूनी खेल से लाल हो जाएगी. फूलन ने गांव को घेरकर करीब 26 लोगों को बंधक बनाया था . सभी को गांव के बाहर लाकर गोलियां मारी गई थीं. बीस लोगों की मौके पर ही मौत हो गई. दो ने बाद में दम तोड़ दिया था. पुलिस रिकार्ड में मृतक आंकड़ा 20 तक ही सीमित रहा था. डाकुओं के निशाने पर रहे 22 ग्रामीणों में 19 ठाकुर, दो कठेरिया और एक मुसलमान थे.
राजाराम चंदेल और रोशन सिंह ने छिपकर देखा था खूनी मंजर: वहीं यह भी कहा जाता है कि ग्रामीणों पर जब डकैत गोलियां बरसा रहे थे. बेहमई के ही राजाराम चंदेल और उनके चचेरे भाई रोशन सिंह अपने जानवरों को लेकर पानी पिलाने नदी पर ले गए थे. गोलियों की गूंज से दौड़े तो डकैतों की बंदूकों से गोलियों की बौछार देख दूर ठिठक गए. जंहा ओट लेकर खूनी मंजर देखा. सिकंदरा थाने में उनकी ओर से ही रिपोर्ट दर्ज कराने की पहल हुई थी.