राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी: छत्तीसगढ़ और ओडिशा की  सांस्कृतिक विरासत पर हुई चर्चा……संगोष्ठी मेें 18 शोधपत्रों का हुआ वाचन: ‘प्रगति के सोपान‘ पुस्तिका और शोध संक्षेपिका का विमोचन 

राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी: छत्तीसगढ़ और ओडिशा की  सांस्कृतिक विरासत पर हुई चर्चा……संगोष्ठी मेें 18 शोधपत्रों का हुआ वाचन: ‘प्रगति के सोपान‘ पुस्तिका और शोध संक्षेपिका का विमोचन 
‘छत्तीसगढ़ के पुरातत्त्व और पड़ोसी राज्यों से संबंध’ विषय पर केन्द्रित तीन दिवसीय राष्ट्रीय शोध-संगोष्ठी प्रारंभ

रायपुर 7 फरवरी 2020/ ‘छत्तीसगढ़ के पुरातत्त्व और पड़ोसी राज्यों से संबंध’ पर केन्द्रित तीन दिवसीय राष्ट्रीय शोध-संगोष्ठी का शुभारंभ महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय, रायपुर के सभागार में किया गया। इस संगोष्ठी का आयोजन छत्तीसगढ़ के संस्कृति विभाग द्वारा किया जा रहा है। संगोष्ठी में कुल 55 शोधपत्र प्रस्तुत किए जाएंगे। शुभारंभ सत्र में आज कुल 18 शोधपत्रों का वाचन और पावर प्वाईंट के माध्यम से प्रदर्शन हुआ। इस मौके पर संस्कृति विभाग की वार्षिक शोध पत्रिका कोसल के 11 वें अंक, महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय रायपुर की मार्गदर्शिका प्रगती के सोपान पुस्तिका और राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के शोध संक्षेपिका का विमोचन किया गया।
कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में प्रो. एस.सी. पण्डा, सम्बलपुर ने अपने उद्बोधन में प्राचीन दक्षिण कोसल के अंतर्गत छत्तीसगढ़ और पश्चिमी ओडिशा के समाहित होने और दोनों की सांस्कृतिक समानताओं पर विस्तार से अपनी बात कही। उन्होंने कहा कि भुवनेश्वर सहित महानदी के तट पर स्थित ओडिशा के अधिकांश मंदिर सोमवंशी राजाओं के द्वारा बनवाये गए थे, जिनकी राजधानी सिरपुर थी।
राष्ट्रीय संगोष्ठी में उत्कल विश्वविद्यालय भुवनेश्वर के कुलपति प्रो. ब्योमकेश त्रिपाठी ने छत्तीसगढ़ और ओडिशा के संबंध में कहा कि इन दोनों राज्यों की संस्कृति और सांस्कृतिक विरासत साझे हैं। दक्षिण कोसल में पाये जाने वाले ताराकृति मंदिर और रिपोजे सिक्के शेष भारत में नहीं मिलते। उन्होंने कहा कि भारत के हृदय स्थल पर स्थित छत्तीसगढ़ के पुरातत्त्व और उसका अन्य पड़ोसी राज्यों से संबंधों का अध्ययन एक सामयिक और महत्वपूर्ण विषय है। पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर, इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ के शोधार्थियों ने छत्तीसगढ़ के विभिन्न अंचलों के प्रागैतिहास, मृत्तिकागढ़, प्राचीन धर्म पर शोधपत्रों का वाचन किया।
वाराणसी से आये वरिष्ठ विद्वान प्रो. डी.पी. शर्मा ने गुंगेरिया के ताम्राश्म निधि और अन्य पड़ोसी राज्यों के समकक्ष उदाहरणों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया। डॉ. प्रबाश साहू ने यहाँ के शैलचित्रों और पड़ोसी राज्यों के शैलचित्रों पर शोध प्रस्तुत किया। श्री जे.आर भगत और सुश्री दीप्ति गोस्वामी ने पाटन तहसील के तरीघाट उत्खनन से प्राप्त सिक्कों की विशेषताओं के बारे में जानकारी दी।
कांकेर की शोध छात्रा भेनु ने गोंडी वेशभूषा में घोटुल विषय पर अपना शोध प्रस्तुत किया। इस शोध के लिये स्वयं गोटुल के सदस्य के रूप में रहकर अध्ययन किया। उन्हांेने गोटुल के संबंध में पूर्व प्रचलित-लिखित भ्रमक तथ्यों का खण्डन भी किया। इस अवसर पर संस्कृति विभाग के सचिव श्री अन्बलगन पी. ने स्वागत उद्बोधन दिया और पुरातत्त्व के क्षेत्र में अधिकाधिक कार्य किये जाने की आवश्यकता बतलाई। इस अवसर पर संस्कृति मंत्री के विशेष सहायक डॉ. अजय शंकर कन्नौजे भी उपस्थित थे।
इस अवसर पर श्री ए.के. शर्मा, डॉ. रमेन्द्रनाथ मिश्र, प्रो. एल.एस. निगम, श्री अशोक तिवारी, डॉ. आर.के. बेहार, श्री जी.एल. रायकवार, डा. शम्पा चौबे रायपुर, प्रो. एस.के. सुल्लेरे जबलपुर, डॉ. चंद्रशेखर गुप्त नागपुर, डॉ. आर. एन. विश्वकर्मा खैरागढ़, डॉ. शंभुनाथ यादव अन्य राज्यों से आए विद्वान प्रतिभागी उपस्थित रहेे।

The News India 24

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