विशेष लेख :- मदकूद्वीप में देखने को मिलता है सामाजिक समरसता का अद्भूत संगम: वर्ष में चार बार लगता है मेला
रायपुर, 6 फरवरी 2020/ कहा जाता है कि मदकूद्वीप में कभी माण्डुक्य ऋषि का आश्रम था। ऐसी मान्यता है कि मंडूक ऋषि ने यहीं पर मंडूकोपनिषद की रचना की थी। उन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम मंडूक पड़ा। छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले के विकासखण्ड पथरिया में शिवनाथ नदी तट पर स्थित मदकूद्वीप में सामाजिक समरसता का अद्भूत संगम देखने को मिलता है। मदकूद्वीप में प्रति वर्ष में चार बार मेला लगता है। यहां 9 अप्रैल को हनुमान जयंती के अवसर पर एक दिन का मेला लगता है। महाशिवरात्रि में एक दिन का मेला लगता है। छेर-छेरा पुन्नी के अवसर पर सात दिन का मेला लगता है और 10 से 18 फरवरी तक ईसाई समुदाय का मेला लगता है।
पथरिया के शिवनाथ नदी तट पर धार्मिक आस्था का द्वीप मदकूद्वीप ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक स्थल है। यहां ईसाई एवं हिन्दू धर्मावलंबियों का मेला भरता है जो सामाजिक समरसता का अद्भूत संगम है। यहां से प्रागैतिहासिक मध्यपाषाण काल के उपकरण, दो प्राचीन शिलालेख तथा कई पाषाण प्रतिमायें भी प्राप्त हुई है। यहां से प्राप्त प्रस्तर शिलालेखों को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के तत्कालीन दक्षिण पूर्व मण्डल कार्यालय विशाखापटनम में रखे होने की जानकारी प्राप्त होती है। इन शिलालेखों का प्रकाशन इण्डियन एपिग्राफी रिपोर्ट वर्ष 1959 में मिलता है। मदकूद्वीप के संबंध में विगत वर्षो में धूमनाथ महात्म्य नामक लघु पुस्तिका का प्रकाशन छत्तीसगढ़ प्रांत इतिहास संकलन समिति द्वारा किया गया है।
वर्ष 2010-2011 के पुरा उत्खनन में यहां लघु मंदिरों की श्रृंखला प्रकाश में आयी है जिसका अनुरक्षण तथा पुनर्निर्माण कार्य हुआ है। यह मंदिरों का अवशेष 10-11 वीं शताब्दी ई. के हो सकते हैं। जो कलचुरी शासकों के काल में निर्मित किये गये होंगे। यहां से कलचुरी प्रतापमल्ल का एक तांबे का सिक्का भी प्राप्त हुआ है। जो कलचुरी शासकों को प्रमाणित करता है।
उत्खनन में मिले मंदिरों में से मध्य के मंदिरों के गर्भगृह का आकार बड़ा तथा उसके दोनों तरफ के मंदिरों का आकार छोटा है। उसी क्रमानुसार उनके शिखर भी निर्मित किये गये थे। इन 18 मंदिरों में से मंदिर 7 पश्चिमाभिमुखी तथा शेष पूर्वाभिमुखी निर्मित थे। इनमें से युगल मंदिर के अलावा केवल 4 मंदिरों में अर्द्धमण्डप के निर्मित होने का भी आभास होता है। सभी मंदिर कलचुरी काल में लगभग 10 वीं शताब्दी ई. से 14 वीं शताब्दी ई. तक के हो सकते हैं।
मदकूद्वीप के उत्खनन से प्राप्त पुरावशेषों में उमामहेश्वर, कृष्ण, नंदी, नृत्य गणेश की दो प्रतिमा, गरूणासीन लक्ष्मीनारायण की दो प्रतिमा, अंबिका 5, ललाटबिम्ब 12, उपासक राजपुरूष 11, योद्धा 6, महिषासुर मर्दिनी 2, योनिपीठ 7, भास्वाहक 2, आमलक 20, कलश 19 और स्मार्तलिंग 12 प्रतिमा शामिल है। मदकूद्वीप के उत्खनन पश्चात विभिन्न कालों के मृदभाण्ड जो कि लाल काले तथा धूसर रंग के है तथा पकी मिट्टी से निर्मित दीपक, मनके, हुक्का आदि लोहे, ताम्र तथा कांस्य धातु की वस्तुएं जैसे बाण, कुंजी, कीलें, घण्टी, चूड़ी, नथनी तथा रंग बिरंगी कांच की चूड़ियां, मनके तथा ताम्र सिक्के भी प्राप्त हुए। कलचुरी शासक प्रतापमल्ल देव का तांबे का सिक्का महत्वपूर्ण है।