तिरंगे का विरोध भाजपा आरएसएस के मूल में – सुशील शुक्ला
रायपुर/22 नवंबर 2019। पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह द्वारा राशन दुकानों को तिरंगे के रंग में रंगने का विरोध करने को कांग्रेस ने भाजपा की राष्ट्रध्वज विरोधी मानसिकता बताया है। प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि राशन दुकानें गरीबों के लिये सम्मान का प्रतीक है। इन दुकानों से मिलने वाला सस्ता राशन प्रदेश की लाखों गरीब लोगों के जीवन का आधार है। सरकार की मंशा सभी राशन दुकानों को एक समान तिरंगे के रंग में रंगवाकर राष्ट्रीय पहचान देने की है। तिरंगा हर भारतीय के आन, बान और स्वाभिमान का प्रतीक है। कोई दल तिरंगे का भी विरोध कर सकता है, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। रमन सिंह ने तिरंगे का विरोध करके भाजपा के कथित राष्ट्रवाद के विकृत चेहरे को सामने ला दिया। भाजपा का राष्ट्रवाद राष्ट्रीय प्रतीक प्रतिमानों का भी विरोध करता है। तिरंगे की खिलाफत भाजपा के लिये नई बात नहीं है। भाजपा के पूर्ववर्ती जनसंघ और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ शुरू से ही राष्ट्रध्वज का विरोध करते रही है। आजादी की लड़ाई के दौरान और आजादी के बाद 6 दशक तक भारतीय जनता पार्टी का पितृ संगठन आरएसएस और हिन्दू महासभा तिरंगे का विरोध करते रहे। आजादी की लड़ाई के समय जब कांग्रेस ने यह निर्णय लिया कि पूरे देश में एक तिरंगे झंडे के नीचे आजादी का आंदोलन चलाया जायेगा। जब कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव पास करते हुए सभी भारतवासियों से 26 जनवरी 1930 को स्वतंत्रता दिवस मनाने का, तिरंगा झंडा फहराने का आह्वान किया, तो हेडगेवार ने सभी आरएसएस शाखाओं को आदेश दिया कि वे तिरंगा झंडा न फहरायें। आज़ादी की पूर्व संध्या, 14 अगस्त 1947 के दिन, आरएसएस के अंग्रेजी मुखपत्र ऑर्गेनाइजर ने तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने का विरोध करते हुये लिखा कि तिरंगा का तीन शब्द ही अपशकुन है। यह बुरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालता है और यह देश के लिए घातक होगा। देश की आजादी के बाद 60 के दशक तक आरएसएस अपने मुख्यालय में तिरंगा झंडा नहीं फहराया था। ऐसे लोग आज एक बार फिर से अपनी खिसकती राजनैतिक जमीन बचाने की होड़ में तिरंगे के भी विरोध में उतर आयें है।