कांग्रेस ने किया मंत्री रविन्द्र चौबे के बयान का समर्थन
जारी रही भावना जैसी प्रभुसूरत देखी तीन तैसा
रायपुर/04 अक्टूबर 2019। जारी रही भावना जैसी प्रभुसूरत देखी तीन तैसी प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री एवं संचार विभाग के अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी ने कहा कांग्रेस ने किया मंत्री रविन्द्र चौबे कि बयान का समर्थन कि रविन्द्र चौबे जी का सार्वजनिक जीवन 40 वर्षों से अधिक का है। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश का प्रत्येक व्यक्ति उनके धर्म और अध्यात्म पर आस्था से भली-भांति परिचित है! चौबे जी ने जो सवाल उठाए हैं निश्चित ही धर्म पर राजनीति होने से उनके मन की जो पीड़ा और व्यथा है वह निकलकर आज बाहर आई है।
प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री एवं संचार विभाग के अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी ने कहा है कि मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम सभी हिंदूओं के आराध्य हैं। छत्तीसगढ़ में तो हमारा अभिवादन भी जय सियाराम और जय राम जी ही रहा है। हम लखन सिया वर रामचंद्र की जय कह कर धार्मिक आयोजनो में जयकार बुलाते आये हैं लेकिन जिस प्रकार से सम्प्रदायिक संगठनों के द्वारा विकृत मानसिकता से ग्रसित होकर राजनीतिक लाभ के लिए “जय-जय श्री राम“ का नारा देकर भोले-भाले लोगों के हाथों में त्रिशूल और भाला थमा दिया जाता है। उस नारे में आक्रोश आवेश और हिंसा की भावनाओं पर प्रकटीकरण होती है, भय और उन्माद का जो भाव झलकता है यह गंभीर बात है। प्रभु श्री रामचंद्र जी राजा थे। उन्होंने त्याग तपस्या का संदेश देने के लिए राजपाट छोड़ा। भगवान राम का पूरा जीवन ही एक संदेश है। रामचंद्र जी को एक भीलनी शबरी के जूठे बेर पसंद थे ना कि 4000 रू. किलो के मशरूम। रामचंद्र जी ने वैराग्य का वरण किया था और सत्ता का त्याग किया था। अपने आप को राम भक्त कहने वाला तो 11 लाख के सूट का मोह नहीं छोड़ पाये। प्रभु श्री राम को तो हम सभी हिंदू पूजते हैं।
प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री एवं संचार विभाग के अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी ने कहा है कि राम कथा का प्रसंग है कि कालनेमि और हनुमान दोनों राम का नाम लेते थे। लेकिन कालनेमि का राम नाम स्मरण आडंबर मात्र था। कालनेमि तो राम नाम लेकर मॉबलिचिंग करने वालो की तरह हनुमान जी की जान लेने के लिए बैठे थे। वे नहीं चाहते थे कि लक्ष्मण जी की जान बचाने के लिये हनुमान जी संजीवनी बूटी ले जा सके। हनुमान जी से बड़ा राम भक्त तो कोई है ही नहीं। साम्प्रदायिक विचारधारा के लोग कालनेमी की तरह ही हिंसा और मॉबलिचिंग में धर्म और भगवान राम के नाम का उपयोग करते हैं। गांधीजी भी राम भक्त थे। गांधीजी भी धार्मिक थे और सच्चे राम भक्त। विष्णु पुराण में भी यह वर्णन है कि मौत से पहले अगर कोई भगवान का नाम लेता है तो विष्णुदूत उसकी आत्मा को लेने आते हैं। गांधीजी का अंतिम वाक्य हे राम ही था। जब नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी को गोली मारी तो गांधी जी के मुख से हे राम ही निकला था।
प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री एवं संचार विभाग के अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी ने कहा है कि हम उस राम को मानते हैं जो कौशल्या के राम हैं जिनके अंदर वात्सल्य और प्रेम हैं। शबरी के राम हमें प्रिय हैं क्योंकि वह सामाजिक सौहार्द का संदेश देते हैं। महिलाओं का सम्मान यदि आरएसएस और बीजेपी करना जानती तो बताये कि ये अपने संगठन की कमान कभी महिलाओं को क्यो नहीं सौंपती है? आदिवासी समुदाय तो इनके लिए आज भी वनवासी हैं। केवल तीर कमान लिए प्रत्यंचा चढ़ाते हुए राम और आक्रोश और आवेश में जय-जय श्रीराम के नारे लगाना ही धर्म नहीं है। मॉब लिंचिंग जैसी घटनाएं निश्चित रूप से किसी भी धर्म में उचित और मान्य नहीं है। धर्म का राजनीतिकरण जिस प्रकार से हो रहा हैं, जिस प्रकार से राम मंदिर के नाम पर चंदा वसूली की गयी निश्चित रूप से इन सबको लेकर रविंद्र चौबे जी की चिंता और व्यथा जायज है।
भगवान राम, महात्मा गांधी और सावरकर
विचारधारा का अंतर बहुत स्पष्ट है : कांग्रेस
छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महामंत्री एवं संचार विभाग के अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी ने कहा है कि महात्मा गांधी 30 जनवरी 1948 को हत्यारे गोड़से की गोलियां लगने पर कहते हैं ‘‘हे राम’’। यह कांग्रेस की विचारधारा है। दूसरी विचारधारा के लोग तो माबलिंचिंग करते समय भगवान राम का नारा लगाते हैं।
छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महामंत्री एवं संचार विभाग के अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी ने कहा है कि बहुत से साथियों ने बापू के राम की चर्चा की, लेकिन बापू का राम कौन था इस बारे में खुलकर चर्चा नहीं की। तो मैं आपको गांधी के राम का एक प्रसंग बताना चाहता हूं। जेम्स डब्लू डगलस ने गांधी पर लिखी अपनी किताब में महात्मा गांधी और विनायक दामोदर सावरकर की मुलाक़ात का ज़िक्र किया है। उन्होंने लिखा है कि तारीख़ 24 अक्टूबर थी और वर्ष था 1909, उस दिन दशहरा था। लंदन के इंडिया हाउस में सावरकर के कहने पर उनके अनुयायियों ने एक भोज का आयोजन किया था। इसमें गांधी जी भी बुलाए गए। वे सावरकर के बारे में जानते थे, लेकिन उन्होंने वहां जाने का फ़ैसला किया। वहां दोनों ने रामायण पर अपनी राय रखी, कहना चाहिए कि रामायण के बहाने दोनों ने अपनी-अपनी विचारधारा की चर्चा की।
गांधी जी ने रामायण को ऐसा ग्रंथ बताया जो सच्चाई के लिए कष्ट सहने की सीख देता है। भगवान राम ने सच्चाई के लिए वनवास का कष्ट सहा, सीता ने रावण की कैद में रहकर भी पवित्र सहनशीलता का परिचय दिया, लक्ष्मण का वनवास एक कठोर तपस्या थी। गांधी जी ने कहा कि सच्चाई के लिए इस तरह का त्याग और तपस्या ही भारत को स्वतंत्रता दिला सकती है, झूठ पर सच की विजय निश्चित है।
सावरकर ने कहा कि रावण जो दमन और अन्याय का प्रतीक है, उसके वध के बाद ही तो रामराज्य की स्थापना हुई। दुष्टता का नाश, दुष्ट के विनाश से ही संभव है। सावरकर ने रामायण की कथा में देवी दुर्गा की प्रशंसा की और कहा कि दुष्ट को ख़त्म करना ज़रूरी है। गांधी अहिंसा और त्याग की बात कर रहे थे और सावरकर हिंसा की। डगलस ने अपनी किताब में लिखा है, “सावरकर की रामायण में दुष्ट रावण को मारना ज़रूरी था और सावरकर की नज़र में आज़ादी की रामायण के रावण गांधी थे।”
गांधी जी मरने से डरते नहीं थे और इतिहास गवाह है कि सावरकर मारने में हिचकते नहीं थे। हम गांधी के अनुयायी हैं और आप सावरकर को वीर कहकर पूजते हैं। इतिहास के पन्नों में इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि गांधी का हत्यारा नाथूराम गोडसे दरअसल सावरकर का ही शिष्य था और सावरकर ही गांधी की हत्या का षडयंत्र रच रहे थे।