सफलता की कहानी:रीपा में फ्लाई ऐश ब्रिक्स निर्माण कर रहीं समूह की महिलाएं अब तक 3.54 लाख रुपए के ब्रिक्स का कर चुकी हैं विक्रय
रीपा से ग्रामीण और महिलाएं हो रहे आर्थिक रूप से सशक्त
रायपुर, 17 सितंबर/छत्तीसगढ़ सरकार की महत्वाकांक्षी योजना के अंतर्गत बने गौठानों में संचालित किए जा रहे रूरल इंडस्ट्रियल पार्क (रीपा) से ग्रामीणों एवं महिलाओं की जिन्दगी संवर रही है। रीपा से आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास के सकारात्मक और बेहतर परिणाम सामने आने लगे हैं। ग्रामीण और महिलाएं अब खुद हुनरमंद होकर छोटे-छोटे रोजगार के जरिए स्वावलंबी बनने की ओर अग्रसर होने लगे हैं।
*रीपा में फ्लाई ऐश ब्रिक्स निर्माण कर 3.54 लाख रुपए की बिक्री कर चुकी है समूह की महिलाएं*
गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले में संचालित रीपा केंद्र बारीउमराव में फ्लाई ऐश ब्रिक्स निर्माण इकाई में राधिका महिला स्वसहायता समूह की महिलाएं फ्लाई ऐश ब्रिक्स निर्माण कर रहीं हैं। अब तक उन्होंने 3 लाख 54 हजार रुपए के ब्रिक्स का बिक्री कर लिया है।
जिला कलेक्टर श्रीमती प्रियंका ऋषि महोबिया के मार्गदर्शन और परियोजना निदेशक श्री कौशल प्रसाद तेंदुलकर के नेतृत्व में यहां के रीपा केंद्रों का बेहतर संचालन हो रहा है। जिला मिशन प्रबंधक एनआरएलएम श्री दुर्गाशंकर सोनी ने बताया कि समूह की सदस्य श्रीमती दुवासा पुरी फ्लाई एश ब्रिक्स निर्माण मशीन को ऑपरेट कर रही है और समूह की सभी महिलाएं पुरुषों के साथ कंधा से कंधा मिला कर फ्लाई ऐश का निर्माण कर रहीं है। समूह द्वारा अब तक 1 लाख 30 हजार से अधिक फ्लाई ऐश ब्रिक्स ईटों का निर्माण किया है। इनमें से 1 लाख 18 हजार इंटों की बिक्री 3 लाख 54 हजार रुपये में कर चुके है। समूह में तेजकुंवर, राजकुमारी, सुनीता, गायत्री, क्रांति एवं मोनिका शामिल है।
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने 2 अक्टूबर 2022 गांधी जयंती के दिन महात्मा गांधी रूरल इंडस्ट्रियल पार्क योजना रीपा का शुभारंभ किया था। योजना के अंतर्गत प्रथम चरण में 300 रूरल इंडस्ट्रियल पार्क विकसित किए जा रहे हैं। इन पार्कों के विकास के लिए राज्य सरकार ने 600 करोड़ रुपए का बजट प्रावधान किया है। प्रत्येक रीपा के विकास के लिए दो करोड़ रुपए आबंटित किए गए।
योजना के अंतर्गत गौठानों को महात्मा गांधी रूरल इंडस्ट्रियल पार्क से जोड़ने से ग्रामीण क्षेत्रों के परिवारों की आय में वृद्धि हो रही है। ग्रामीणों को आय में वृद्धि करने के नए स्त्रोत मिल पा रहे है जिससे वे आर्थिक रूप से मजबूत हो रहे हैं। गाँव में उद्यमिता को बढ़ावा मिलने से स्थानीय स्तर पर बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन हो रहे हैं, जिससे लोगों को अब रोजी मजदूरी के लिए बाहर नहीं जाना पड़ता।