दूर हुआ डर-भय, गोठान में पशुओं के साथ चरवाहों को मिला आश्रय होर…,हइई..,हर….इस आवाज से चलते और थमते है पशुओं के पांव

दूर हुआ डर-भय, गोठान में पशुओं के साथ चरवाहों को मिला आश्रय होर…,हइई..,हर….इस आवाज से चलते और थमते है पशुओं के पांव
रायपुर 28 सितंबर 2019/ होर…,र्हइइ…,हो…,हर.. के साथ घंटी, घुंघरू के बीच गायों के रंभाने की आवाज भोर होने के कुछ देर पश्चात हर गांव की गलियों से होकर घर के लोगों तक अक्सर सुनाई देती है। शाम को भी जब गोधूली का वक्त होता है तब गांव से कुछ दूर चारागाह या गोठान से एक साथ घर की ओर लौटते पशुओं के झुंड से पुनः वही आवाज आती है, होर,हइई..हो, हर…। कब चलना है, कब किस ओर मुड़ना है और कब वही रूक जाना है, यह सब इन्हीं शब्दों में है। यह आवाज भले ही आपकों और हमको समझ नही आती लेकिन झुंड में चलने वाले हर पशु इस आवाज को भलीभांति समझते है। अपने मालिक के घर से बाहर चरने के लिये निकलने से लेकर वापिस घर लौटने के इस लंबे अंतराल में गांव के पशुओं का एक अस्थाई मालिक होता है वह है चरवाहा। हाथों में तेंदू की लाठी लिए, सिर पर खुमरी पहने हुए एक अलग अंदाज और पोशाक में सैकड़ों पशुओं के झुंड को काबू करता हुआ गाँव से दूर किसी सुनसान जगह खार या गोठान पर ले जाता है। यह चरवाहा ही है। जिसे धूप हो, छांव हो, बारिश हो या कड़ाके की ठंड। कभी किसी की परवाह किए बगैर अपने ही धुन में रमकर सभी पशुओं की न सिर्फ देखरेख करता है। एक भरोसे के साथ सुरक्षित तरीके से पशुओं को चराकर मालिक के घर भी पहुचाता है। कोई पशु किसी कीे बाड़ी में नुकसान न कर दे या खेत में जाकर फसल न चर ले इस बात का भी ख्याल रखना बखूबी आता है।
         चरवाहा छत्तीसगढ़ की संस्कृति और रहन सहन वेशभूषा का वह हिस्सा है जिसके बिना यहा के ग्रामीण परिवेश की कल्पना अधूरी सी है। कृषि और पशुपालन यहा के लोगों के जीवन का प्रमुख आधार है,ऐसे में चरवाहा भी गांव के लोगों के बीच की वह कड़ी है जो कृषि और पशुपालन में अपनी सहभागिता निभाता आ रहा है। समय के साथ पशुपालन में लोगों की अरूचि और कम होती पशुओं की संख्या ने चरवाहों के मन में  असमंजस की स्थिति उत्पन्न कर दी थी। दरअसल वे निर्णय कर पाने की स्थिति में नही थे कि वे अपना पुश्तैनी काम सम्हाले या आने वाली पीढ़ी को इस काम से दूर कर जीवकोपर्जन का नया साधन ढूंढनंे कहंे। असमंजस और रोजी रोटी के लिये नये व्यवसाय की जुगत में लगे चरवाहों को मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की नरवा,गरवा,घुरूवा एवं बाड़ी विकास योजना से एक नई राह मिल गई। गांव-गांव में गोठान बनने से पशुओं को स्वच्छ पेयजल, चारा के साथ छायादार एक निश्चित ठिकाना मिला वही चरवाहें जो पशुओं को लेकर दिन भर इधर उधर भटकते फिरते थे उन चरवाहों को आराम के साथ गोठानों में कई सुविधाएं मिली।
         आरंग विकासखंड के ग्राम बनचरौदा के रहने वाले हीरामन यादव लगभग 35 साल से पशुओं को चराते आ रहे है। इससे पहले उसके पिताजी शिव प्रसाद ने अपनी जिंदगी चरवाहा के रूप में गुजार दी। लगभग 60 साल के हीरामन यादव और 37 साल के बेटे नरेश यादव अपने गांव के 230 पशुओं को प्रतिदिन गांव के घरों से निकालकर चराने के लिये ले जाते है। हीरामन यादव का कहना है कि वह अपने बेटे के साथ गांव की पशुओं को रोजाना घर से चराने के लिये बाहर ले जाते है। बदले में उन्हें गांव के पशु मालिकों द्वारा चार गाड़ा धान दिया जाता है। कुछ घरों में वे गाय का दूध दुहने भी जाते है वहा से दूध भी मिल जाता है।  हीरामन ने बताया कि सरकार ने गोठान बनाकर पशुओं के लिये अच्छी व्यवस्था कर दी। पहले पशुओं को चराते हुये हमें गांव से बहुत दूर ऐसे जगह तक जाना पड़ता था जहा छांव भी हो और पानी की व्यवस्था। गोठान में छांव होने के साथ बैठने के लिये चबूतरे है। पीने के लिये कोटना के माध्यम से स्वच्छ पानी है और चारे की व्यवस्था के साथ ही बीमार पशुओं की इलाज के लिए पशु चिकित्सक भी है। पहले दूर जंगल में पशु चराने के दौरान जंगली जानवरों का खतरा भी मंडराता रहता था लेकिन गोठान तो पूरी तरह से सुरक्षित है। चारों तरफ फेंसिंग है। चरवाहों के लिये भी अलग से कमरा और शौचालय आदि की व्यवस्था है। बनचरौदा के ही मंगतू यादव और उसका बेटा हीराऊ यादव 223 पशुओं को प्रतिदिन चराने ले जाता है। कई पीढ़ियों से चरवाहा का काम कर रहे मंगतू यादव का कहना है कि पशुपालन के प्रति लोगों का ध्यान कम होने की वजह से पशुओं की संख्या कम हो रही है। सरकार द्वारा इस ओर सुध लेकर छत्तीसगढ़ की प्रमुख चिन्हारी गरवा को बचाने पहल की गई है। गोठान बनाने से और गोबर से खाद और अन्य उपयोगी सामग्री बनने से गायांे का संरक्षण होगा। इससे चरवाहें भी खुश है। पशुओं के साथ हमें भी एक आश्रय स्थल मिल गया है।
ईमानदारी और निष्ठा के साथ पूरा करते है अपना काम
 यू तो चरवाहा का काम बहुत आसान सा लगता है। कुछ लोग कह सकते है कि बस लाठी लेकर पशुओं को सम्हालना ही तो है लेकिन सरल और आसान दिखने वाला यह कार्य बहुत ही चुनौती और धैर्य वाला है। पशु जो कि मनुष्य की पूरी भाषा या बोल नही समझ सकता और मनुष्य पशुओं की भाषा को ठीक से नही जान पाता ऐसे में चरवाहा अपने कुछ शब्दों और बोल के माध्यम से सैकड़ों पशुओं को अपने काबू में रखता है। गाय से दूध दुहना भी जोखिम भरा होता है। अधिकांश पशु मालिक की जगह ये चरवाहें ही दूध दुहने का काम बखूबी कर लेते है। कई बार पशुओं के बीच आपसी संघर्ष में उसे सम्हालना सभी के लिये आसान नही रहता ऐसे विपरीत परिस्थितियों में भी वे पशुओं के बीच आपसी संघर्ष का अंत कर देते है। सैकड़ों पशुओं में एक समान सा दिखाई देने वाले पशुओं में कौन सा पशु किसका है यह पहचान तो वही कर सकता है जो सभी पर बारीकी से नजर रखता हो। चरवाहें में यह भी गुण विद्यमान होती है तभी तो ये पशुओं को उसके मालिक के घरों तक ईमानदारीपूर्वक आसानी से पहुंचा पाते है। ठंडी और बारिश के मौसम में जब बहुत से लोग घर पर रहना पसंद करते है ऐसे विपरीत मौसम में भी ये अपने कार्यों को बखूबी अंजाम देते है। किसी के बाड़ी या खेत में घुसकर कोई पशु फसल को नुकसान न पहुचायें इस बात का ख्याल रखते हुये पूरे समय तक सतर्क रहते है।

The News India 24

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