अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विख्यात हैं छत्तीसगढ़ के शैल-गुफा चित्र…राज्य में शैल चित्रों के संरक्षण हेतु ‘‘वैश्विक संभावना में रॉक कला संरक्षण’’ विषय पर सेमीनार सम्पन्न

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विख्यात हैं छत्तीसगढ़ के शैल-गुफा चित्र…राज्य में शैल चित्रों के संरक्षण हेतु ‘‘वैश्विक संभावना में रॉक कला संरक्षण’’ विषय पर सेमीनार सम्पन्न

रायपुर, 28 दिसम्बर 2021/छत्तीसगढ़ के शैल चित्र तथा गुफा चित्र राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं अपितु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विख्यात है, इनका संरक्षण तथा संवर्धन अति आवश्यक है। इसके लिए विगत दिवस नवा रायपुर अटल नगर स्थित अरण्य भवन में ‘‘वैश्विक संभावना में रॉक कला संरक्षण’’ विषय पर आयोजित एक दिवसीय सेमीनार में गहन विचार-विमर्श किया गया। सेमीनार का आयोजन मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की मंशा के अनुरूप वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री मोहम्मद अकबर के मार्गदर्शन में छत्तीसगढ़ राज्य जैव विविधता बोर्ड द्वारा किया गया।


कार्यक्रम में प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख श्री राकेश चतुर्वेदी ने अपने उद्बोधन में कहा कि वन अधिकारियों के तौर पर इन प्राकृतिक शैल चित्रों एवं गुफा चित्रों का संरक्षण एवं संवर्धन हमारी जिम्मेदारी है, क्योंकि अधिकतर शैल चित्र एवं गुफा चित्र वन क्षेत्रों में ही स्थित है। उक्त स्थलों के संरक्षण से भावी पीढ़ी को हम अपनी पुरातन संस्कृति एवं सभ्यता तथा जैव सांस्कृतिक विविधता से अवगत करा सकेंगे। इस संबंध में उन्होंने संबंधित अधिकारियों को समयबद्ध योजना बनाकर इनके संरक्षण एवं संवर्धन के कार्यों को बढ़ावा देने के लिए विशेष जोर दिया। इस अवसर पर छत्तीसगढ़ राज्य जैव विविधता बोर्ड के सदस्य सचिव श्री अरूण कुमार पाण्डेय द्वारा कहा गया कि राज्य में शैल चित्रों तथा गुफा चित्रों के संरक्षण व संवर्धन कार्य को विशेष गति मिली है।
सेमीनार में प्राचीन शैल चित्र विषय की जानकार एवं अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विशेषज्ञ डॉ. श्रीमती मिनाक्षी दुबे पाठक ने बताया कि छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित शैल चित्र/गुफा चित्र अंतर्राष्ट्रीय स्तर के हैं एवं इनके संरक्षण एवं संवर्धन की दिशा में कार्य किया जाना अत्यंत आवश्यक है। उनके द्वारा बताया गया कि छत्तीसगढ़ राज्य के कांकेर, कोरबा, रायगढ़ एवं धरमजयगढ़ वनमंडल में पुरातन कालीन शैल चित्र एवं गुफा चित्र बड़ी संख्या में हैं, जो 10 हजार वर्ष से भी अधिक पुराने हो सकते हैं। छत्तीसगढ़ के उक्त शैल चित्रों को उकेरने में प्राकृतिक पदार्थों का इस्तेमाल किया गया है। ये शैल चित्र एवं गुफा चित्र यदि सही तरीके से सहेजे एवं संरक्षित किए जाए, तो छत्तीसगढ़ शैल-गुफा चित्र के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक महत्वपूर्ण पर्यटन एवं पुरातात्विक क्षेत्र के रूप में स्थापित हो सकता है।
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ राज्य जैव विविधता बोर्ड द्वारा राज्य में स्थित शैल चित्रों एवं गुफा चित्रों के जैव विविधता के दृष्टिकोण से अध्ययन हेतु डॉ. मिनाक्षी दुबे पाठक को 21 से 30 दिसंबर 2021 तक छत्तीसगढ़ आमंत्रित किया गया है। जिसके प्रथम चरण में उनके द्वारा कांकेर वन वृत्त में 21 से 23 दिसम्बर तक शैल चित्रों का अध्ययन कर लिया गया है और द्वितीय चरण में 24 से 30 दिसम्बर तक बिलासपुर वृत्त के कोरबा, रायगढ़ एवं धरमजयगढ़ वनमंडलों का भ्रमण कर उक्त वन मंडलों में स्थित शैल एवं गुफा चित्रों का निरीक्षण कर संरक्षण एवं संवर्धन हेतु सुझाव दिया जाएगा।

The News India 24

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