लेख: हिंसक सोच समाधान नहीं हो सकती – राजेश बिस्सा

लेख: हिंसक सोच समाधान नहीं हो सकती – राजेश बिस्सा

समूह की शक्ति का जीवंत उदाहरण देश की आजादी

प्रिय युवा साथियों,

आजादी का हीरक जयंती वर्ष चल रहा हैं। देश आजादी के 75 वें वर्ष को धूमधाम से मना रहा है। इसकी सार्थकता तब संभव होगी जब युवा एक मजबूत समाज को निर्मित करने की ओर अग्रसर होंगे।

युवाओं को एक बार गांधीवाद की ओर जरुर पलट कर देखना चाहिये। इसके लिये महात्मा गांधी की जीवनी रटने की जरूरत नहीं। उनके दृष्टिकोण को समझना जरूरी है। युवाओं को समझना होगा की गांधीवाद अपने जीवन को सीमित कर लेना या वर्तमान परिस्थितियों व आधुनिकीकरण से दूर रहकर जीना नहीं है।

गांधीवाद है परस्पर सहयोग से अपनी व अपनों ताकत बढ़ाना। हमारी ताकत बढ़ेगी तो समाज की ताकत बढ़ेगी। समाज की ताकत बढ़ेगी तो राष्ट्र की ताकत बढ़ेगी। राष्ट्र की ताकत बढ़ेगी तो हम उस विश्व शक्ति की ओर अग्रसर होंगे जो हमारा लक्ष्य है।

युवाओं को समझना होगा की महात्मा गांधी राजनीतिक लाभ और हानि का विषय नहीं क्योंकि गांधी की बात करने से महात्मा गांधी जिंदा होकर लाभ लेने के लिए हमारे बीच नहीं आने वाले।

गांधी जीवन दर्शन हैं, यह हमें समझना होगा। इसके लिए हमें गांधी जी के जीवन वृतांत से तीन शब्द निकालने होंगे पहला न्याय, दूसरा परस्पर सहयोग व प्रेम और तीसरा स्वरोजगार।

न्याय से अभिप्राय है ना अन्याय सहो और ना दूसरे पर अन्याय होता देखो अर्थात अन्याय के विरुद्ध अपना पक्ष जरूर रखो। इससे सामाजिक व धार्मिक वैमनस्यता खत्म होगी।

परस्पर सहयोग व प्रेम से अभिप्राय है कि हर उस व्यक्ति के लिए मदद का हाथ उठाओ जिसके लिए आप जरूरतमंद साबित हो सकते हैं या जिसे आप की जरूरत हो । ऐसा करने से एक ऐसी श्रृंखला बनेगी जो आपकी व्यक्तिगत ताकत को सामूहिक ताकत में बदल देगी और समूह की शक्ति को कोई नकार नहीं सकता। भारत की आजादी इसका साक्षात उदाहरण है।

स्वरोजगार से अभिप्राय है की अपनी अंतिम प्राथमिकता नौकरी करना रखिये। प्रयास यह हो की अपनी सक्षमता व शक्ति के अनुरूप कुटीर व छोटे उद्योग या व्यवसाय को प्राथमिकता दी जाये। ऐसा करने से आप तो आत्मनिर्भर होंगे ही साथ ही आपके से जुड़े लोगों की भी बेरोजगारी दूर हो सकेगी।

इन तीन शब्दों के आधार पर अगर हम अपने जीवन को गतिमान करते हैं तो एक अच्छी और सच्ची दिशा देने में सफल होंगे।

 वर्तमान में विषाक्त होते माहौल, छिन्न भिन्न होते सामाजिक तथा पारिवारिक रिश्तो की डोर व उपभोक्तावादी संस्कृति के हावी होने का कारण कहीं ना कहीं गांधीवादी दृष्टिकोण से अपने को दूर ले जाना है। इस दूरी को खत्म कीजिए।

हिंसक सोच क्षणिक आनंद तो दे सकती है लेकिन स्थाई समाधान नहीं दे सकती। लोगों ने हांका और दौड़ पड़े इस प्रवृत्ति से ऊपर उठना होगा और यह तभी होगा जब युवा हर विषय को अपने नजरिए से देखना व समझना शुरू करेंगे।

एक बार जन व समाज केंद्रित होकर गांधीवादी तरीके से जीवन जीकर देखिए आप पाएंगे कि पहले आप भीड़ में भी अकेलापन महसूस करते थे लेकिन अब अकेले में भी आप हजारों लोगों से घिरे हुए हैं।

The News India 24

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