विशेष लेख म.प्र.–छ.ग. में आधुनिक खेती के प्रणेता, सरबदा वाले— कृषि रत्न दाऊ कल्याण सिंह सोनवानी
मध्यभारत में स्थित छत्तीसगढ़ का यह क्षेत्र, पुराने समय से ही सारे संसार मे *धान के कटोरा* के नाम से प्रसिद्ध है। *यहाँ विश्व मे सबसे ज्यादा, 21–22 हजार धान की किस्मे पायी जाती हैं।।* छ ग के धरतीपुत्र किसानों के मेहनत से उत्पादित धान-चावल से देश के अन्य भागों के अतिरिक्त विदेशों में भी लोग अपनी क्षुधा शांत करते हैं।।
फिर भी यह दुर्भाग्य ही था कि इस धान के कटोरे, छ ग प्रदेश में भुखमरी थी, लाखों लोग देश के विभिन्न भागों में पलायन करते थे ।। इसके कई कारण थे।। खेती योग्य जमीन का असमान वितरण, खेती के पुराने तरीके, उन्नत खाद – बीज, मशीनों और तकनीकों का प्रचलन में नही होना, सिंचाई के साधनों का अभाव आदि आदि….।। यही स्थिति कमोबेश देशभर में थी।।
जब पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी शासन में आयीं, तो उन्होंने इस स्थिति से निपटने के लिये- *सुप्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक और देश मे हरित क्रांति के जनक श्री एम एस स्वामीनाथन* के साथ मिलकर देश की कृषि व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन करने की मुहिम शुरू किये।। जिसमें मिट्टी परीक्षण करना, मिट्टी और मौसम के अनुसार फसल लेना, सिंचाई के साधनों का विस्तार, उत्तम खाद और कृषियंत्रों का प्रयोग, अधिक पैदावार वाले फसलो के लिये उन्नत बीजों का प्रयोग, उच्च नस्ल के भारवाही जानवर और कई अन्य सम्भव उपाय किये गये..।।
*म प्र–छ ग में हरितक्रांति को सबसे पहले अपनाकर इसकी शुरुवात करने वाले और इसके लिये लोगों को प्रेरित करने वाले *दाऊ कल्याण सिंह सोनवानी जी* ही थे…।। जब उन्होंने पहले पहल खेती में नई तकनीक का प्रयोग प्रारंभ किया, तब गाँव, आसपास और इलाके के लोग इसकी सफलता पर नकारात्मक टिप्पणी किया करते थे।। दाऊ जी के बाद भाटापारा के एक अग्रवाल परिवार ने भी कृषि में नई तकनीक का प्रयोग करना शूरु किया।। इसके बाद धीरे धीरे यह क्रम बढ़ता चला गया और आज सारा छ ग, म प्र और देशभर में नई तकनीक से कृषिकार्य किया जा रहा है।। *हरित क्रांति का प्रयोग सफल रहा।*। देश में खाद्यान्न का बम्पर पैदावार हो रहा है।। देश मे भुखमरी मिट गई ।। लोगों को मुफ्त या एक रुपये किलो में चावल मिल रहा है।। देश के अनाज गोदाम भरे पड़े हैं।। देश खाद्यान्न उत्पादन में न केवल आत्मनिर्भर हुआ, बल्कि इसका निर्यात भी किया जा रहा है..।।
ऐसे *दूरदृष्टा* *कृषिरत्न दाऊ कल्याण सिंह सोनवानी जी* का जन्म पैतृक ग्राम सरबदा में 2 जनवरी 1942 , दिन शुक्रवार को हुआ था।। उनके पिता *दाऊ मनोहर सिंह सोनवानी और माता रामबती थीं।।* दादाजी *दाऊ गोपाल सिंह सोनवानी जी* तीन गाँव — *सरबदा, उलबा और चंडी के मालगुजार थे ।। पिता जी दो भाई थे– मनोहर सोनवानी और मनीराम सोनवानी ।। मनीराम चंडी में रहे, दाऊ मनोहर सोनवानी सरबदा में रहे।। कालांतर में तीनों गाँव के कई एकड़ जमीन सोनवानी परिवार ने गरीबों में बांटे।। *आजादी के बाद आचार्य विनोबा भावे के भूदान आंदोलन से प्रेरित होकर स्वयं दाऊ कल्याण सिंह सोनवानी जी ने कई एकड़ जमीन सपर्पित कर दिये..।।*
दाऊ कल्याण सिंह सोनवानी जी की प्रारंभिक शिक्षा *जी जामगांव* में 5 वीं तक हुआ।। तत्कालीन पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण वे अभनपुर से 8 वी तक ही शिक्षा प्राप्त कर पाए और खेती बाड़ी के अपने पसंदीदा काम मे हाथ बंटाने लगे।।
दाऊ कल्याण सिंह सोनवानी जी दो भाई थे, छोटे भाई डोमार सिंह सोनवानी जी है।। और 8 बहनें थीं।। दाऊ जी भले स्वयं ज्यादा नही पढ़ पाए हों, पर अपने छोटे भाई को उच्च शिक्षा दिलाकर एम बी बी एस करवाकर डॉक्टर बनवाये।। वे संयुक्त संचालक स्वास्थ्य सेवाएं बनकर आज रिटायरमेंट का जीवन व्यतीत कर रहे हैं।। बहनों को, अपने बच्चों को, भाई के बच्चों को, परिवार, रिश्तेदारों और अन्य सभी को उन्होंने पढ़ाया और पढ़ने के लिये प्रेरित–प्रोत्साहित किये..।।
दाऊ कल्याण सिंह जी अपने मनपसंद काम खेती किसानी में *रमे, तो रम ही गये ….।।* खेतों- जमीनों का समतलीकरण, मिट्टी परीक्षण, मिट्टी की उर्वराशक्ति को बनाये रखने, बढ़ाने, उनके अनुकूल बीज, फसल, खाद पानी, मशीनों का प्रयोग ….आदि नए नए प्रयोग करते लोगों ने उन्हें देखा / पाया..।।
धीरे धीरे उनकी ख्याति गाँव से बाहर, फिर रायपुर , भोपाल होते हुए दिल्ली पहुंच गया …।। वहाँ से कृषि अनुसंधान कर्त्ताओं की टीम, कृषि वैज्ञानिक, प्रोफेसर, लेक्चरर, छात्र और नए कृषि सीखने के लिये किसानों का सरबदा गाँव में तांता लगा रहता…।। *वे सबसे मिलते, बतियाते, सीखते और सिखाते….।।*
रायपुर में कृषि विश्विद्यालय खुला, तो दाऊ जी का खेत–खलिहान, घर सब, मानो प्रयोगशाला ही बन गया हो…।। फिर उनका *इंटरव्यू रायपुर दूरदर्शन के प्रसिद्ध और लोकप्रिय कार्यक्रम *कृषि दर्शन* में लगातार आने लगे।। आकाशवाणी के *कृषिचर्चा* में भी लगातार भेंटवार्ता प्रसारित होने लगे…।।
दाऊ कल्याण सिंह जी कृषि के साथ साथ मशीनों के भी दीवाने थे।। मशीनो के सम्बंध में उनमे जन्मजात प्रतिभा थी।। वे छोटे बड़े हर प्रकार के मशीनों को चलाते, खोलते, समझते और थोड़े प्रयत्नों के बाद बना देते थे।। चाहे वे कृषि यंत्र हों, पानी मशीन पम्प वगैरह हो, चाहे दुपहिया- चारपहिया वाहन हों, चाहे धान कुटाई- पिसाई मशीन हों, चाहे रेडियो, घड़ी, टीवी, पंखे, कूलर या अन्य इसी प्रकार के बड़े या सूक्ष्मयन्त्र हों, सभी में उन्हें महारत हासिल था ।। अंग्रेजी कम जानने के बावजूद , अंग्रेजी में मशीनों से सम्बंधित कई किताबें मंगाते, खरीदते, पढ़ते और उनके नक्शे- डायग्राम, रेखाचित्र देखकर समझ जाते और फिर बनाते– सुधारते थे।। कभी भी गाँव घर या आसपास में कोई मशीन सुधारने– बनाने के लिये मेकेनिक बुलाने, रिपेयरिंग के लिये शहर या रायपुर भेजने की जरूरत नही पड़ी।।
एक और खास बात यह कि उस क्षेत्र में कई चीजें पहली बार सोनवानी परिवार के यहाँ आया । जैसा कि जब रेडियो आया, तो छ ग में गिने चुने लोगों के यहां ही रेडियो पहुंचा था।। मशीन से तरह तरह की आवाजें और संगीत निकालकर मनोरंजन करने वाला यन्त्र यानी रेडियो ।।
लोग बड़े कौतुहल और जिज्ञासा से देखते सुनते थे।। *दाऊ जी के पिताजी दाऊ मनोहर सिंह सोनवानी जी जब धोती कमीज पहनकर, पगड़ी बाँधकर, बैलगाड़ी सजाकर, ऊंची आवाज में रेडियो चालुकरके नौकर के साथ घूमने निकलते थे, तब देखने वालों का मजमा लग जाता था और ऐसे ही वे दिन में रेडियो सुनते–सुनाते तीन चार गाँव घूम लेते थे।।*
*वह भी क्या यादगार दिन थे*।।
*आसपास के गांवों में पहली बार सायकल, दोपहिया मोटर सायकल, चारपहिया कार, जीप, मिनीबस और मिनी ट्रक दाऊ जी के घर मे ही आया..।। और हाँ, धनकुट्टी मशीन, आटाचक्की, तेल पेरने/ निकालने की मशीन भी दाऊ जी ने ही पहले पहल लगवाकर इलाके के लोगों को सुविधाएं उपलब्ध करवाए…।।*
उस जमाने मे दूर दूर से लोग बैल गाड़ी में कई बोरा धान कुटाने आते थे, आटा पिसाते, तिलहन फसलों के तेल निकलवाते और शुद्ध रूप से तेल खाते पीते थे।। *तिल के तेल निकालने के बाद उनका खली गुड़ के साथ खाइये… फाइव स्टार होटल के मिष्ठान भी फैल है…।।* अपने घर परिवार के साल भर की जरूरतों के अनुसार लोग कुटाते पिसाते थे।। अपनी बारियों के इंतजार में मिल के सामने गाड़ियों की लंबी लाइने लगी रहती थीं ।।
उस समय बड़ी बड़ी इंजन वाली और तेज आवाज करने वाले मशीनें हुआ करती थी ।।
*वह दौर भी एक यादगार और सुहाना दौर था।।*
सरबदा गाँव पहुँच विहीन और दलदल – कीचड़ से घिरे हुए गाँव था।। सूखे में बैलगाड़ी से आ जा सकते थे।। बारिश में तो बस…दलदल – कीचड़ में तैरते- कूदते रहो…।।वहाँ बिजली, सड़क और स्कूल बहुत बाद में आया।। सड़क के लिये दाऊ जी ने पहल किया और गांव वालों के साथ श्रमदान करके और स्वयं लागत लगाकर कच्ची सड़क बनवाये।। 1970 के दशक में बिजली आया।। गाँव मे स्कूल भी दाऊ जी के पहल पर गाँव वालों के सहयोग से खुला।। ऊपर से भागदौड़ कर एक शिक्षक की व्यवस्था से स्कूल की शुरुवात हुई।। दाऊ जी का शिक्षा के प्रति विशेष ध्यान था।। उन्होंने अपने घर–परिवार, गाँव और अन्य लोगों को उच्च शिक्षा के लिये प्रेरित–प्रोत्साहित किया।। *कई होनहार गरीब छात्रों को पढ़ने के लिये उन्होंने हर प्रकार से मदद दिये।। वे जब अपने बच्चों को स्कूलों में भर्ती करने या बच्चों की पढ़ाई लिखाई के बारे में जानने के लिये जाते थे, तो वे मास्टर जी के साथ पूरे स्कूल को घूमते थे और बातों बातों में चर्चा कर जान लेते थे कि बच्चों के लिये स्कूल में किस चीज की ज्यादा जरूरत है..?? और वे वहाँ पर उन्हें खरीदकर दे देते थे या लगवा देते थे।। लेकिन इस बात की चर्चा वे कभी किसी से नहीं करते थे।। *उनसे सहायता प्राप्त और ऊँचे पदों पर पहुंचे लोग आज भी उन्हें बहुत सम्मान और अहोभाव से याद करते हैं।।*
दाऊ जी समाज सेवा में भी अग्रणी रहे।। उन्होंने कई बार इलाके में नेत्र शिविर लगवाये ।। स्वस्थ शिविर लगवाए।। मरीजों के रहने, खाने पीने, दवाई आदि की व्यवस्था खुद करते/करवाते थे।। *पूर्व मुख्यमंत्री श्री अजीत जोगी जब रायपुर में कलेक्टर थे, तब ऐसे ही एक नेत्र शिविर में उद्घाटन करने आये थे।। तब वे दाऊ जी के व्यक्तित्व, काम, विचार और जनता की सेवा भावना से अत्यधिक प्रभावित हुए थे।। तब से जोगी जी यदा कदा सरबदा दाऊ जी के घर आते ही रहते थे और उनके खेत खलिहानों में घूमकर, उनके घर खा पीकर तरोताजा होते, आनंदित होते और पारिवारिक पिकनिक मनाकर वापस लौटते थे।। दाऊ जी के साथ उनका आत्मीय सम्बन्ध रहा।।*
ऐसे ही देश के दिग्गज नेता *विद्याचरण शुक्ल जी तो दाऊ जी के घर सरबदा को अपना दूसरा घर कहते थे और बार बार आते ही रहते थे।। और उन्हें अपना छोटा भाई कहते थे।। उनके साथ भी दाऊ जी का पारिवारिक आत्मीय सम्बन्ध रहा।*।
गुरुचरण सिंह होरा जब कुरूद धमतरी से चुनाव लड़ते थे, तो दाऊ जी से आशीर्वाद लेने के लिये आते रहे।। कई नामी-गिरामी लोग आते और मिलते …. *दाऊ जी के मेहमान नवाजी का लुफ्त उठाते…।। दाऊ जी के मेहमान नवाजी, सम्बन्ध और व्यवहार में ही ऐसा चुम्बकीय आकर्षण था।।*
*लेकिन दाऊ जी कभी किसी के यहाँ नही जाते थे…लोग बुलाकर बुलाकर थक जाते थे।। दाऊ जी हंसकर यही कहते कि कभी मौका मिले तो आऊँगा….लेकिन वह मौका किसी को भी नही मिलता था…।।
*दाऊ जी के यहाँ सैकड़ों मजदूर बारहों महीने लगे रहते थे।। वे श्रमिक हितैषी थे।।*
*सावन-भादो के महीने में बरसते पानी के बीच महिला मजदूरों के ददरिया के तान और छत्तीसगढ़ी गानों की स्वर लहरियाँ और तेज हवाओं के बीच रिमझिम बारिश में दाऊ जी , कभी खुमरी, कभी छाता ओढ़े काम करवाते, निंदाई गुड़ाई करवाते थे, आनंदित होकर….।।* *इस खुशी और उत्साह में वे अपना खाना – पीना भी भूल जाते थे।।*
*वे उन्हें कभी नौकर या मजदूर की तरह व्यवहार नही करते थे।। उन्हें वे अपने घर के सदस्य की तरह मानते और व्यवहार करते थे।। किसी के घर शादी, छट्टी, तीज-त्योहार, दुख-सुख के मौके पर कभी कोई मजदूर बिना अतिरिक्त सहायता के खाली हाथ नही लौटते थे।। मजदूरों के लिये वे अभिभावक की तरह थे।। अकाल दुकाल के समय दाऊ जी बिना काम के, सिर्फ टाइमपास काम करवाते थे और मजदूरी देकर उनके परिवार का पेट पालते थे।।कितने भी दुख तकलीफ हों, आखिर में तो दाऊ जी हैं ही ….।।*
वे कांग्रेस पार्टी से जुड़े थे।। वे जी जामगांव और सरबदा के 4 कार्यकाल तक सरपंच रहे।। एक बार जनपद सदस्य रहे।। नहर पानी पंचायत के अध्यक्ष रहे।। अजीत जोगी के कलेक्टरी के समय वे जिला बीस सूत्रीय समिति के सदस्य रहे।। आकाशवाणी रायपुर के सलाहकार मंडल के भी सदस्य रहे।। सामाजिक रूप से कई सालों तक कुरूद धमतरी के सतनामी समाज के अध्यक्ष–और संरक्षक रहे।। *सर्वसमाज के लोगों को दाऊ जी , किसी भी सामाजिक- धार्मिक कार्यकर्मो, आयोजनों के लिये मुक्त हाथों से दान–सहयोग देते थे।।*
निजी रूप से दाऊ कल्याण सिंह सोनवानी जी सरल, सादगी पसन्द, व्यक्ति थे।। संवाद बहुत अच्छे करते थे।। वचन के पक्के थे।। उनका रहन सहन, खानपान, पहनावा आदि एकदम सामान्य था।। वे पेंट- शर्ट और जूता पहनते थे।। आडम्बर और दिखावे से वे कोसों दूर रहते थे।। *कर्म ही पूजा है* यही उनके जीवन का मूलमन्त्र था।। और यही शिक्षा और संस्कार उन्होंने अपने परिवार को दिया।। *वे अपने परिवार के लिये बरगद के पेड़ की तरह थे* ।। अपने 10 भाई- बहनों, अपने और अपने छोटे भाई के परिवार के सदस्यों के साथ वे एक संयुक्त परिवार के आधार स्तम्भ थे।। बच्चे- बड़े सब मिलाकर 50- 60 सदस्यों का बड़ा और भरापूरा , उस क्षेत्र का प्रसिद्ध, प्रतिष्ठित और सम्मानित परिवार था।। सबका एक साथ रहना, खाना पीना, बच्चों की कोलाहल, शरारत, सबके साथ रहना, अनुभव करना जैसा जीवन , किस्मतवाले बिरलों को ही नसीब होता है.. ।। घर की बहुलक्ष्मी महिलाएं स्वयं अपनी देखरेख में नौकरानियों के साथ खाना बनाती- परोसती और अन्य घरेलू काम करती थीं।। छोटे से लेकर बड़े सबका का अपना काम और जिम्मेदारियां बंटी रहती थी।। आज भी सोनवानी परिवार सरबदा भले ही रोजी-रोटी, व्यवसाय और नौकरियों के कारण अलग अलग रहते हों, पर वे एक ही हैं।। शादी विवाह और सुख- दुख के मौके पर सब एक साथ इकठ्ठे होते हैं, तो ऐसा लगता है मानो फिर वही पुराने दिन वापस आ गए हों।।
*यह दाऊ कल्याण सिंह सोनवानी का ही पुण्यप्रताप है कि आज उनका परिवार कृषि, व्यवसाय और उच्च शासकीय सेवाओं में अग्रणी भूमिका निभा रहा है और समाज, प्रदेश और देश की सेवा में अहम योगदान दे रहे हैं ।।*
ऐसे महान कर्मयोगी, दूरदृष्टा, कृषिरत्न दाऊ कल्याण सिंह सोनवानी जी मात्र 62 वर्ष की आयु में, 28 जुलाई 2004, दिन बुधवार को दोपहर 12 बजे के लगभग इस दुनिया से महाप्रयाण कर गये।।
*ऐसे महान कर्मयोगी को उनके पुन्यस्मृति दिन 28 जुलाई के अवसर पर विनम्र श्रद्धांजली और कोटि-कोटि नमन…*