पहले कोरोना कुप्रबंधन के लिए मोदी की ओर से माफ़ी मांगें फिर दान करने निकलें छग के भाजपा नेता: डहरिया
- देश में हुई लाखों मौतों के ख़ून से छत्तीसगढ़ भाजपा नेताओं के हाथ भी सने हुए हैं
- मोदी जी ने ख़ुद कुछ किया नहीं और ज़िम्मेदारी राज्यों पर थोप दी
- मोदी के सात साल ने सत्तर साल की उपलब्धियों पर कालिख़ पोत दी है
रायपुर, 29 मई, 2021। छत्तीसगढ़ के नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री शिव डहरिया ने कहा है कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के सात वर्ष पूरे होने पर जश्न की मुद्रा में कोरोना पीड़ितों की सहायता का आडंबर रचने से पहले भारतीय जनता पार्टी के छत्तीसगढ़ के नेताओं को बताना चाहिए कि कोरोना से देश में जो तबाही हुई है उसके लिए ज़िम्मेदार क्या नरेंद्र मोदी जी की काहिल और निकम्मी सरकार ही नहीं है? उन्होंने कहा है कि अगर समय रहते नरेंद्र मोदी जी कांग्रेस के पूर्व पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी जी की चेतावनी को ही सुन लेते और कार्रवाई करते तो आज तबाही का ये मंज़र नहीं होता.
उन्होंने अपने बयान में कहा है कि आज देश कोरोना की चपेट में आकर कराह रहा है. कोरोना के पहले चरण में नरेंद्र मोदी जी ने एकाएक लॉक डाउन करने की घोषणा कर दी जिससे देश भर के करोड़ों प्रवासी मज़दूरों को रोज़ी रोटी के लाले पड़ गए और हज़ारों मज़दूरों को बूढ़ों और बच्चों सहित सैकड़ों किलोमीटर पैदल चल कर घर पहुंचना पड़ा. छत्तीसगढ़ भी लाखों लोंगों की पीड़ा का गवाह बना तब कहां थे भाजपा के ये नेता? कोरोना से निपटने के लिए पुख़्ता प्रबंध करने की जगह प्रधानमंत्री लोगों से ताली-थाली बजवाते रहे, मोमबत्तियां जलवाईं और स्वास्थ्यकर्मियों पर पुष्प वर्षा का आडंबर किया.
शिव डहरिया ने कहा है कि उसी प्रधानमंत्री ने कोरोना के दूसरे दौर में चिकित्साकर्मियों को दिए जाने वाले 50 लाख रुपए की बीमा योजना को वापस ले लिया. दूसरे दौर की चेतावनी वैज्ञानिक दे रहे थे लेकिन केंद्र की सरकार ने न तो राज्यों को चेताया और न ख़ुद कोई कार्रवाई की. पिछले दो महीनों में देश ने कोरोना संकट से निपटने में मोदी जी की विफलता के दारुण दृश्य देखे हैं. उन्होंने कहा है कि सड़कों पर दवाइयों और ऑक्सीजन के लिए सड़कों पर भटकते कोरोना मरीज़ों और उनके रिश्तेदारों को देखा है. भारत की जनता को पहुंची इस पीड़ा के लिए कौन अगर नरेंद्र मोदी ज़िम्मेदार नहीं हैं तो कौन है, यह भाजपा नेताओं को बताना चाहिए.
शहरी प्रशासन एवं विकास मंत्री ने कहा है कि छत्तीसगढ़ में लोगों के बीच जाकर कोरोना पीड़ितों की सेवा का दिखावा करने जा रहे भाजपा नेताओं को पहले मोदी की ओर से जनता से माफ़ी मांगना चाहिए और बताना चाहिए कि बनारस में चुनाव लड़ने पहुंचकर ख़ुद को गंगा पुत्र बताने वाले नरेंद्र मोदी गंगा में बह रही लाशों और उसके तट पर दफ़्न हो रही हज़ारों शवों पर चुप्पी साधे क्यों बैठे हैं? उन्होंने कहा है कि यह प्रधानमंत्री जी की अदूरदर्शिता थी कि समय से पहले उन्होंने कोरोना पर जीत की घोषणा कर दी और देश भर में चुनावी भीड़ देखकर ख़ुश होते रहे, जब कोरोना मरीज़ों की भीड़ बढ़ी तो केंद्र सरकार ने सारी ज़िम्मेदारी राज्यों पर थोप दी और ख़ुद चुप्पी साधे बैठ गए.
कोरोना के टीकाकरण पर शिव डहरिया ने कहा है कि पीएम केयर्स में हज़ारों करोड़ का हिसाब देना तो दूर नरेंद्र मोदी ने टीकाकरण का बोझ भी राज्यों पर डाल दिया और ऊपर से टीका वितरण पर नियंत्रण अपने हाथ में रख लिया. उन्होंने पूछा है कि कोरोना पर अनर्गल बयान दे रहे पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह तो ख़ुद डॉक्टर हैं, वे बताएं कि बिना टीका उपलब्ध करवाए राज्यों को टीकाकरण करने का निर्देश देने वाले प्रधानमंत्री को नासमझ कहा जाए या निर्लज्ज?
छत्तीसगढ़ के भाजपा नेताओं को चुनौती देते हुए कांग्रेस नेता ने कहा है कि गांवों और शहरों में लोगों के पास जाने से पहले वे बता दें कि छत्तीसगढ़ में भाजपा से लोकसभा के नौ और राज्यसभा के दो सांसदों ने कितनी बार छत्तीसगढ़ में कोरोना पीड़ितों के लिए कौन सी सहायता दी है और कितनी बार केंद्र सरकार से कोरोना पीड़ितों के लिए सहायता मांगी है. उन्होंने कहा है कि यह आरएसएस की दीक्षा का परिणाम है कि कोरोना काल में भी पीड़ितों के साथ खड़े होने की बजाय भाजपा नेता एक फ़र्ज़ी कागज़ को कांग्रेस का टूलकिट बताकर आंदोलन करने पर सड़कों पर उतर आए.
शिव डहरिया ने कहा है कि कोरोना की वजह से हुई लाखों लोगों की मौत के ख़ून से छत्तीसगढ़ भाजपा नेताओं के हाथ भी सने हुए हैं और वे शर्म से अपना मुंह ढांपने की बजाय उन्हीं हाथों से दान करने का नाटक प्रायोजित करने जा रहे हैं. उन्होंने कहा है कि दरअसल मोदी जी के सात साल ने इस देश के सत्तर साल की उपलब्धियों पर कालिख़ पोत दी है और पहला अवसर है कि पूरी दुनिया का मीडिया आपदा कुप्रबंधन पर भारत के प्रधानमंत्री को लानतें भेज रहे हैं. इससे ध्यान भटकाने के लिए और अपनी छवि बचाए रखने के लिए भाजपा के नेता कभी अंतराष्ट्रीम मीडिया को, कभी सोशल मीडिया को तो कभी आईएमए को गरिया रहे हैं.