अपराधियों को खुला संरक्षण
रायपुर। राजधानी में अपराधी बेलगाम हैं और अपराध का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। हत्या, लूट, बलात्कार, चाकूबाजी से लेकर जुआ, सट्टा और शराब-गांजा समेत कई तरह के नशीले पदार्थों की तस्करी व अवैध बिक्री जैसे अपराध और अवैध धंधे बेखौफ अंजाम दिए जा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी है। वह कार्रवाई भी कर रही है और अपराधियों को पकड़कर जेल भी भेज रही है। बावजूद, अपराध पर अंकुश नहीं लग रहा है। इसके पीछे कारण या तो देश का लचीला कानून है, जिसके कारण बड़ा-से बड़ा अपराधी आसानी से जेल के बाहर आ जाता है और सालों न्यायालय में तारीख-दर-तारीख चलते रहने वाले केस के दौरान ठसन से अपनी जिंदगी जीते रहता है। या फिर अपराधियों को समाज के ठेकेदारों और नेताओं से मिलने वाला संरक्षण है जो अपराधियों के हौसले बुलंद रखता है और उन पर कार्रवाई का न डर होता है न असर। यही वो कारण है जिसके चलते अपराध दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहा है। अक्सर यह देखने में आता है कि पुलिस जब भी किसी मामले में कार्रवाई करती है कुछ नेता जो किसी न किसी राजनीतिक दल से जुड़े होते हैं, वे अपराधियों को छुड़ाने के लिए सक्रिय हो जाते हैं और पुलिस पर उन्हें छोडऩे के लिए दबाव डालते हैं। कई मामलों में तो ऊंचे लेबल पर पुलिस को फोन पर ही अपराधियों को छोडऩे के निर्देश दे दिए जाते हैं।
पुलिस न इधर के, न उधर के समाज में कानून-व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी पुलिस की है। लेकिन उसके लिए हमेशा दुविधा की स्थिति होती है। अपराधियों पर कार्रवाई करे तो मुश्किल, न करे तो भी मुश्किल। दरअसल पुलिस के कमजोर होने के पीछे उसका स्वतंत्र एजेंसी के रूप में अधिकार संपन्न न होना है। पुलिस सरकार का ही एक अंग है जो केन्द्र और राज्य की गृह मंत्रालय के अधीन काम करती है। इसके चलते सत्ता में काबिज सरकार और संबंधित राजनीतिक दलों का पुलिस पर दबाव रहता है। सरकार चला रहे राजनीतिक पुलिस को अपने तरीके से हांकती है। यही कारण है कि कई मामलों में पुलिस के हाथ बंधे होते हैं और वह स्वतंत्र होकर कार्रवाई नहीं कर पाती। अगर किसी मामले में कार्रवाई करती भी है तो सरकार के दिशानिर्देश पर, इसका मतलब यह भी नहीं है कि पुलिस निरंकुश हो जाए. सरकार को अपराध और अपराधियों पर नियंत्रण के लिए पुलिस को स्वतंत्र एजेंसी के तौर पर कार्य करने की छूट देनी चाहिए, और गृह मंत्रालय को सिर्फ पुलिस की भूमिका की समय-समय पर मानिटिरिंग करनी चाहिए।
राजधानी में हर अवैध धंधे के पीछे छुटभैय्ये नेता राजधानी में अपराधियों को किस कदर राजनीतिक संरक्षण मिल रहा है कि पुलिस किसी भी मामले में बड़ी कार्रवाई करने से पहले दस बार सोचती है। पुलिस ऐसे मामले में तो कार्रवाई कर लेती है जिन वारदातों में आरोपी पहली बार अपराध में संलिप्त होता है या जो घटनाएं आपसी रंजिश, निजी दुश्मनी या अन्य कारणों से घटती है अपराधी या तो स्पाट पर ही या एक दो दिनों में वारदात वाले स्थान में ही पकड़ में आ जाता है। लेकिन ऐसे वारदात जो गैंगवार, जुआ-सट्टा और अवैध शराब. गांजा, व अन्य नशीले पदार्थो की तस्करी और अवैध बिक्री से संबंिधत मामले हो तो आरोपी की धर-पकड़ में अनावश्यक देरी की जाती है और यदि किसी की गिरफ्तारी हो भी जाती है तो इनके सुरक्षा कवच बने कई छुटभैय्ये नेता उन्हें छुड़ाने सक्रिय हो जाते हैं। पुलिस पर खुद भी दबाव बनाते है और बात नहीं बनने पर ऊपर से फोन करवाकर दबाव बनाते हैं। राजधानी में प्राय: हर राजनीतिक दल के निचले स्तर के नेता जो वार्ड स्तर की राजनीति करते है वे ऐसे अपराधियों को संरक्षण प्रदान करते हैं क्योंकि इन्ही के दम पर उनकी राजनीति चमकती है। पार्टी से संबंधित किसी भी कार्य में अपने को बड़े नेताओं की नजरों में चढ़ाने के लिए ऐसे ही अवैध धंधेबाज उन्हें आर्थिक मजबूती प्रदान करते हैं बदले में ये नेता उनका धंधा चमकाने और पुलिस से उन्हें बचाने में मदद करते हैं। पार्टियों के छात्र और युथ विंग के प्राय: हर पदाधिकारियों को सटोरियों-जुआरियों और मोह्ल्लों में अपनी दुकानदारी चलाने वाले अपराधियों को छुडाऩे के लिए पुलिस पर दबाव बनाते देखा जा सकता है। कई मामलों में पार्टी के बड़े स्तर के नेता भी अपराधियों को बचाने के लिए पुलिस पर दबाव बनाते हैं, जिससे पुलिस को कार्रवाई से हाथ खींचना पड़ता है, इससे उसकी छबि पर भी असर पड़ता है।
राजनीतिक दल ऐसे नेताओं पर लगाएं अंकुश राजनीतिक दलों को अपराधियों को संरक्षण देने वाले नेताओं पर अंकुश लगाना चाहिए। हालाकि आज के दौर में जब राजनीति का स्वरूप बदल गया हो राजनीतिक दलों से ऐसी सुचारिता की उम्मीद करना बेमानी है फिर भी समाज, लोगों की सुरक्षा और कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए ऐसे पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं पर लगाम कसना चाहिए जो खुद बड़ा दिखाने के लिए अपराधियों और काले धंधे करने वालों को प्रोत्साहित करते हैं और उन्हें राजनीतिक संरक्षण प्रदान करते हैं। ऐसे ही लोगों के कारण ये अपराधी नासूर बन जाते हैं और समाज में गंदगी फैलाने के साथ लोगों के सम्मान और जान के लिए भी मुसीबत बन जाते हैं। पार्टियों को ऐसे नेताओं को संज्ञान में लेकर इनकी पार्टी की सदस्यता खत्म कर देनी चाहिए या उनके ऐसे कारनामों पर सख्ती से अंकुश लगाना चाहिए। पुलिस को भी ऐसे नेताओं के नाम और मोबाइल नंबर संबंधित राजनीतिक दलों को उपलब्ध कराना चाहिए और बताना चाहिए कि उक्त नेता द्वारा फलां आरोपी को छोडऩे अथवा मामले में कार्रवाई नहीं करने के लिए पुलिस पर दबाव बनाया जा रहा है। इससे राजनीतिक दल को यह तो पता चलेगा कि उसका फलां नेता अपने पद और पार्टी के नाम का किस तरह गलत फायदा उठा रहा है।