मोदी सरकार मजदूर व कामकाजी तबके के शोषण के लिए नई तरह की गुलामी को दे रही बढ़ावा : रणदीप सिंह सुरजेवाला
- नए श्रमिक विरोधी कानून से बनेगी आर्थिक गुलामी की स्थिति, फिर सोचे केंद्र सरकार
- नए ‘पेशेवर सुरक्षा, स्वास्थ्य व काम करने की स्थिति (ओएसएच) संहिता’ से संगठित क्षेत्र में 41 लाख नौकरियां खत्म हो जाएंगी
भारत में गुलामी प्रथा एक सदी पहले खत्म हो चुकी है। लेकिन मोदी सरकार ने अपने कुछ पूंजीपति मित्रों को फायदा पहुंचाने के लिए ‘पेशेवर सुरक्षा, स्वास्थ्य व काम करने की स्थिति (ओएसएच) संहिता- 2020’ द्वारा ‘मजदूरों एवं कामकाजी तबके’ की ‘आर्थिक गुलामी’ की व्यवस्था को फिर से पेश कर दिया है।
कमजोर ‘मजदूर व कामकाजी तबके’ का शोषण
भाजपा सरकार ने गरीबों व कमजोरों का शोषण रोकने की बजाय अब मजदूरों व उत्पादन कार्य में लगे मजदूरों और कामकाजी तबके के दमन को खुली छूट दे दी है। नए नियमों के अंतर्गत नियम 28 से फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों के लिए 12 घंटे की शिफ्ट का प्रावधान किया जा रहा है, जिससे उनके पास फैक्ट्री आने के लिए घंटों तक का सफर करने, आराम करने, घर के काम करने या फिर परिवार को देने के लिए समय ही नहीं बचेगा और उनके काम व जीवन का संतुलन बिगड़ जाएगा। इससे भारत में मजदूर एवं कर्मचारी वर्ग की शारीरिक एवं मानसिक सेहत पर बुरा असर पड़ेगा।
मजदूर विरोधी कठोर नियमों से भारी बेरोजगारी उत्पन्न होगी
मोदी सरकार के मजदूर विरोधी नियमों से भारत में इस समय फैक्ट्रियों में काम कर रहे एक तिहाई कर्मचारियों के पास कोई काम नहीं बचेगा और वो बेरोजगार हो जाएंगे क्योंकि उद्योग मौजूदा ‘तीन शिफ्ट’ में काम करने की व्यवस्था की जगह ‘दो शिफ्ट’ में काम करने की व्यवस्था लागू कर देंगे।
भारत सरकार द्वारा साल 2017-18 में किए गए उद्योगों के वार्षिक सर्वे के अनुसार, भारत में अकेले संगठित क्षेत्र में 1,22,24,402 (लगभग 1.22 करोड़) कर्मचारी फैक्ट्रियों में काम कर रहे थे। लेकिन अब भाजपा सरकार द्वारा नए नियमों के तहत काम के घंटे बढ़ा दिए जाने के बाद एक तिहाई यानि लगभग 40,65,000 कर्मचारी फौरन बेरोजगार हो जाएंगे।
इस कथित प्रस्ताव को केवल भाजपा की राजनैतिक विचारधारा ही उचित ठहरा सकती है, जो भारत के मेहनतकश मजदूरों व कर्मचारियों को अमीरों के गुलाम के रूप में देखती है।
प्रस्तावित अपवाद मजदूरों को प्रतिदिन 12 घंटे से भी ज्यादा समय तक काम करने को मजबूर कर देंगे
नए नियम 56 के तहत, भाजपा सरकार ने अपवादों की लंबी सूची प्रस्तावित की है, जिसमें नियोक्ता कर्मचारियों को प्रतिदिन 12 घंटे से भी ज्यादा काम करने को मजबूर कर सकता है। ये अपवाद भारत में नई तरह की गुलामी प्रथा को शुरू करने के यंत्र हैं क्योंकि इनके लागू होने के बाद फैक्ट्री/मिल मालिक गरीब व कमजोर तबके का शोषण करने के लिए स्वतंत्र होंगे। इन अपवादों, जिनमें एक कर्मचारी को 12 घंटे से ज्यादा समय तक काम करने के लिए मजबूर किया जा सकेगा, में मरम्मत, प्रारंभिक काम, तकनीकी काम, आवश्यक वस्तुओं का निर्माण, इंजन रूम/बॉयलर का काम, गाड़ी की लोडिंग/अनलोडिंग का काम, आकस्मिक काम आदि अनेक अस्पष्ट परिस्थितियां शामिल हैं।
प्रवासी मजदूरों के लिए डेटाबेस बनाने का नहीं है प्रावधान
भाजपा की गरीब विरोधी मानसिकता, जो बिना योजना के लॉकडाऊन लगाकर हजारों मजदूरों की मौत के लिए अपराधिक लापरवाही की दोषी है, के चलते प्रवासी मजदूरों का डेटाबेस बनाने का कोई प्रावधान नहीं किया गया है, जो रोजी रोटी की तलाश में अनेक शहरों व कस्बों से आने वाले करोड़ों प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा के लिए आवश्यक था।
संक्षेप में भाजपा सरकार ने नए नियमों द्वारा आधुनिक भारत के निर्माताओं यानि हमारे प्रवासी मजदूरों का अपमान किया है और नए नियमों में उनके अस्तित्व के रिकॉर्ड के प्रावधान को समाप्त कर दिया है। इससे भाजपा द्वारा कमजोर तबकों को कोई भी अधिकार दिए बिना उनका शोषण करना आसान हो जाएगा।
यह गौरतलब है कि 14 सितंबर, 2020 को भाजपा सरकार ने प्रवासी मजदूरों के साथ एक निर्दयी मजाक किया था। जब संसद में प्रश्न पूछा गया कि, ‘‘क्या केंद्र सरकार ने पीड़ितों के परिवारों को कोई भी मुआवज़ा/आर्थिक सहायता दी है?’’ और ‘‘क्या सरकार ने कोविड-19 के संकट के चलते प्रवासी मजदूरों को हुए नौकरी के नुकसान का आंकलन किया है?’’ तो भाजपा सरकार ने कहा कि ‘‘ऐसा कोई डेटा उपलब्ध नहीं है’’। लॉकडाऊन के दौरान प्रवासी मजदूरों द्वारा असीम संकट झेले जाने के बावजूद भी इस तरह के डेटाबेस को नए नियमों में शामिल न किए जाने का निर्णय इस बात की पुष्टि करता है कि भाजपा सरकार के लिए गरीब व मेहनतकश प्राथमिकता नहीं है।
भाजपा सरकार ने एक बार फिर भारत में मजदूरों की जीविका, सेहत और कामकाजी जिंदगी के बीच संतुलन पर वैधानिक आक्रमण की अनुमति दे दी है। हमारी मांग है कि इन नियमों पर पुनर्विचार किया जाए और ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन काँग्रेस सहित सभी श्रमिक संगठनों एवं संबंधित पक्षों से बातचीत की जाए। तब तक के लिए इन नियमों को लागू नहीं किया जाए।