आखिर ये कैसा तनाव है ये कैसी मंदी है जो एक परिवार को निगल गई

आखिर ये कैसा तनाव है ये कैसी मंदी है जो एक परिवार को निगल गई

रायपुर। आखिर ये कैसा तनाव है ये कैसी मंदी है,जो एक परिवार को निगल गई। हंसता खेलता परिवार रात को ऐसा सोया कि फिर कभी उठ ही नहीं पाया। जी हां हम बात कर रहे हैं केंद्री के साहू परिवार की। पता नहीं किन हालातों में यह सब हुआ क्योंकि अब कोई चश्मदीद बाकी भी नहीं है। परिवार के पांच के पांच लोग जान से हाथ धो बैठे हैं। सुसाइड नोट यह बता रहा है कि आर्थिक तंगी कहीं ना कहीं कोई न कोई कारण जरूर है। राजनांदगांव के पिता पुत्र की आत्महत्या  को लोग भूल भी नहीं पाए कि केंद्री की इस सामूहिक मृत्यु ने एक बार फिर समाज में व्याप्त अनचाहे तनाव  को सामने ला दिया है।राजनांदगांव में मामूली विवाद पर पिता पुत्र की आत्महत्या का मामला अभी ठंडा भी नहीं हुआ है कि राजधानी से लगे ग्राम केंद्री में साहू परिवार की सामूहिक मृत्यु का मामला सुर्खियों में आ गया है। परिवार के मुखिया कमलेश साहू की लाश फांसी पर लटकती मिली है। बाकी सदस्य भी घर में मृत पाए गए। मृत सदस्यों में उसकी मां उसकी पत्नी और दो बच्चे भी शामिल है। पूरा परिवार अचानक मौत की नींद सो गया।

सुसाइड नोट की बात को अगर सच माने तो मृतक कमलेश साहू कहीं ना कहीं आर्थिक तंगी से जूझ रहा था। वह वेल्डर था और कोरोना काल में सारे कामधाम ठप होने के साथ ही वेल्डिंग जैसा काम तो लगभग खत्म हो गया था। अब सवाल यह उठता है कि क्या उसके पास रोजगार के अन्य अवसर नहीं थे? क्या वह वेल्डिंग के अलावा दूसरा कोई काम नहीं कर सकता था? या फिर खुद आत्महत्या करने और परिवार को मौत की नींद सुलाने के सिवा उसके पास कोई चारा नहीं बाकी था? आखिर ऐसी कौन से कारण थे जो उसे इतना बड़ा कदम उठाने पर मजबूर कर गए।हैरानी की बात यह है कि परिवार के चार सदस्य जो मृत पाए गए उनमें उसकी मां भी शामिल है। वो मां जिसने उसे पाल पोस कर बड़ा किया। कमाने खाने योग्य बनाया। क्या उसकी ममता को मौत के घाट उतारते समय उसके हाथ नहीं कांपे होंगे? मृतकों में उसकी पत्नी भी थी,जो उसके सुख दुख की साथी थी। उसके संघर्ष में कंधे से कंधा मिलाकर जिंदगी की गाड़ी खींच रही थी। क्या अपनी ही जीवनसंगिनी को मौत के घाट उतारने से पहले उसने एक पल भी सोचा नहीं होगा? दो छोटे-छोटे बच्चे थे। आखिर उन बच्चों की मासूमियत भी क्या उसके दिमाग में अचानक उमड़ी हैवानियत  को हरा नहीं पाई? क्या बच्चों का फूल जैसा चेहरा उसके पत्थर हो चुके दिल पर कोई असर नहीं डाल पाया? क्या उसका दिल जरा भी नहीं पसीजा? आखिर ऐसी क्या वजह थी जो उसको इतना कठोर कदम उठाना पड़ा? अपने ही हाथों अपने परिवार को खत्म कर देना कोई मामूली बात नहीं है। चार-चार सदस्यों को खोने के बाद खुद को भी फांसी पर लटका देना यह समझ से बिल्कुल परे है और इस बात की ओर साफ साफ संकेत देता है कि समाज में एक अनचाहा तनाव फैला हुआ है। अनचाहा तनाव बहुतों पर हावी है। अनचाहा तनाव बहुतों को अपनी जकड़ में ले चुका है। अनचाहा तनाव धीरे-धीरे बहुतों की सोचने समझने की शक्ति को भी खत्म करता जा रहा है।

The News India 24

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