भूपेश सरकार के दो दिग्गज मंत्री रविन्द्र चौबे और मो. अकबर आज राजभवन पहुंचे
रायपुर। भूपेश सरकार के दो दिग्गज मंत्री रविन्द्र चौबे और मो. अकबर ने शुक्रवार को राजभवन पहुंचे। राज्यपाल अनुसुईया उइके के साथ हुई संक्षिप्त चर्चा हुई। मुलाकात के बाद बाहर निकले मंत्री रविन्द्र चौबे ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की बात को ही दोहराया। उन्होंने राजभवन और सरकार के बीच टकराव को सिरे से खारिज किया है। मंत्री चौबे ने कहा है कि सरकार और राजभवन में टकराव या तल्खी जैसी कोई बात नहीं है। राज्यपाल हमारे राज्य की संवैधानिक प्रमुख हैं। राज्यपाल और सरकार के बीच संवाद का सिलसिला चलता रहता है। राज्यपाल जो भी जानकारी सरकार से मांगेंगी वो उन्हें उपलब्ध कराई जाएगी।
दरअसल टकराव का एक कारण गृह विभाग की बैठक और दूसरा सरकार की ओर से भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के विभागों में फेरबदल को देखा जा रहा था। सरकार ने तीन आईएएस अफसरों को नई जिम्मेदारी देने के साथ ही अतिरिक्त प्रभार से मुक्त किया था। सोनमणि बोरा अतिरिक्त प्रभार सचिव राज्यपाल को सचिव राज्यपाल के अतिरिक्त प्रभार से मुक्त किया था। अमृत कुमार खलखो आयुक्त बस्तर संभाग जगदलपुर को सचिव राज्यपाल का अतिरिक्त प्रभार और केडी कुंजाम को संयुक्त सचिव राजभवन सचिवालय का अतिरिक्त प्रभार सौंपा था। इसके बाद से राजनीतिक गलियारे से इन दो कारणों को राजभवन और सरकार के बीच टकराव से जोड़कर देखा जा रहा है।
इधर राजभवन में ली जाने वाली गृह विभाग की समीक्षा बैठक को स्थगित करना पड़ा था। राज्यपाल ने राजभवन में गृहविभाग की समीक्षा बैठक बुलाई थी। बैठक में गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू को भी शामिल होना था, लेकिन उन्होंने पीएल पुनिया के संपर्क में आने के कारण वे एहतियातन होम आइसोलेशन में थे। उन्होंने क्वारेंटाइन में होने की सूचना दी थी। इन कारणों से बैठक स्थगित की गई। उसी दिन गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू का मुख्यमंत्री निवास में भूपेश बघेल की बुलाई बैठक में शामिल होना विपक्ष की नजर में आ चुका था। इस पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने विष्मुदेव साय ने कहा था कि गृह मंत्री का यह रवैया सीधे-सीधे राज्यपाल का अपमान और संवैधानिक मर्यादा का उल्लंघन है। प्रदेश की सर्वोच्च संवैधानिक प्रमुख होने के नाते प्रदेश में कानून-व्यवस्था के बिगड़ते हालात पर राज्यपाल की चिंता को संजीदगी से लेने के बजाय गृहमंत्री ने राजनीतिक अशिष्टता का परिचय दिया है।
इधर गृह विभाग के संसदीय सचिव विकास उपाध्याय ने बयान जारी कर विष्णुदेव साय को जवाब दिया था। उन्होंने संवैधानिक अवमानना किए जाने की बात को सिरे से खारिज किया था। विकास उपाध्याय ने कहा था कि कांग्रेस प्रभारी पीएल पुनिया 9 और 10 अक्टूबर को पार्टी की बैठक ली थी। उनके संपर्क में कांग्रेस के तमाम नेताओं के साथ गृहमंत्री भी आए थे। ऐसी स्थिति में मानवता और सुरक्षा के नाते गृहमंत्री का राजभवन न जाना पूरी तरह से सही निर्णय था। जब इस वजहों की जानकारी भी दे दी गई थी,तो इसे भाजपा बेवजह तूल क्यों दे रही है, समझ से परे है। ऐसी स्थिति में गृहमंत्री का सुरक्षा कारणों से राजभवन न जाना कहां की संवैधानिक अवमानना है, समझ से परे हैं।
संसदीय सचिव उपाध्याय ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की बुलाई गई समीक्षा बैठक में गृहमंत्री के शामिल होने की बात पर भी स्पष्टीकरण दिया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस प्रभारी के संपर्क में आने वालों में मुख्यमंत्री भी थे। वे हमारे पार्टी के ही थे। ऐसी स्थिति में उनकी बैठक में सम्मिलित होना इसलिए भी तर्कसंगत था कि कांग्रेस प्रभारी के संपर्क में वे गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू के साथ थे। परन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि राज्यपाल को भी किसी संक्रमण के खतरे में डाल देना उचित होता। राज्यपाल अनुसुईया उइके राजभवन में पूरी तरह से सुरक्षित और ऐसी कोई क्वारेंटाइन की स्थिति में आए के संपर्क में नहीं थीं। यह बैठक रखी गई थीं, जहां गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू की वजह से कोविड-19 को लेकर कोई बात हो जाए,इसको लेकर स्वयं गृहमंत्री गंभीर थे। इसका ध्यान रखना बेहद ही जरूरी था। इस पूरी बात की जानकारी राजभवन को दे दी गई थी। ऐसे में भाजपा नेताओं की ओर से गृहमंत्री को लेकर उठाई गई अशिष्ट आचरण से लेकर, संवैधानिक अवमानना की बात करना पूरी तरह से गलत है।