कृषि विधेयक पर जिला पंचायत अध्यक्ष निराकार पटेल की प्रतिक्रिया
रायगढ़/28सितम्बर2020। कृषि विधेयक पर जिला पंचायत अध्यक्ष निराकार पटेल ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्ति करते हुए कहा कि किसानों के हित को लेकर जिन तीन बिलों पर किसान हितैषी कानून बताकर भाजपाई वाहवाही लूट रहे, वह किसानों का कल्याणकारी नहीं बल्कि व्यापारियों और बिचोलियों को फ़ायदा पहुंचाने वाला है। जिला पंचायत रायगढ़ अध्यक्ष एवं वरिष्ठ कांग्रेसी नेता निराकार पटेल ने यह कहते हुए अपनी बात पर जोर दिया कि इस बिल का विरोध हरियाणा एवं पंजाब जैसे जागरूक किसानों वाले राज्य के जनप्रतिनिधि कर रहे हैं। यहां तक कि भाजपा के समर्थसक अकाली दल के केंद्रीय मंत्री ने बिल का विरोध करते हुए अपना इस्तीफा तक दे दिया। निराकार पटेल ने किसानों के लिए बने कानून के तथ्यों पर अपनी राय देते हुए कहा कि,
पहला बिल – जिस पर सबसे अधिक बात हो रही है कि अब किसानों की उपज सिर्फ सरकारी मंडियों में ही नहीं बिकेगी, उसे बड़े व्यापारी भी खरीद सकेंगे। यह बात समझ से परे है क्योंकि आखिर ऐसा कब था कि किसानों की फसल को व्यापारी नहीं खरीद सकते थे। बिहार में तो अभी भी बमुश्किल 9 से 10 फीसदी फसल ही सरकारी मंडियों में बिकती है। बाकी व्यापारी ही खरीदते हैं। क्या फसल की खुली खरीद से किसानों को उचित कीमत मिलेगी? यह भ्रम है। क्योंकि बिहार में मक्का जैसी फसल सरकारी मंडियों में नहीं बिकती, इस साल किसानों को अपना मक्का 900 से 1,100 रुपये क्विंटल की दर से बेचना पड़ा, जबकि न्यूनतम समर्थन मूल्य 1,850 रुपये प्रति क्विंटल था। हर कोई किसान की फसल खरीद सकता है, राज्य के बाहर ले जा सकता है। आप ऐसा किसानों के हित में कर रहे हैं। कर लीजिये। मगर एक शर्त जोड़ दीजिये, कोई भी व्यापारी किसानों की फसल सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम कीमत में नहीं खरीद सकेगा। क्या सरकार ऐसा करेगी? अगर हां, तभी माना जायेगा कि वह सचमुच किसानों की हितचिंतक है।
दूसरा बिल – कांट्रेक्ट फार्मिंग। इसमें यह प्रावधान है कि कोई भी कार्पोरेट किसानों से कांट्रेक्ट करके खेती कर पायेगा। यह वैसा ही होगा जैसा आजादी से पहले यूरोपियन प्लांटर बिहार और बंगाल के इलाके में करते थे। मतलब यह कि कोई कार्पोरेट आयेगा और किसान की जमीन लीज पर लेकर खेती करने लगेगा। इससे किसान को थोड़ा फायदा हो सकता है। मगर मेरे गाँव के उन गरीब किसानों का सीधा नुकसान होगा जो आज छोटी पूंजी लगाकर रेग, अधिया, ठेका पर लेते हैं और खेती करते हैं। ऐसे लोगों में ज्यादातर भूमिहीन होते हैं और दलित, अति पिछड़ी जाति के होते हैं। वे एक झटके में बेगार हो जायेंगे।कार्पोरेट के खेती में उतरने से खेती बड़ी पूंजी, बड़ी मशीन के धन्धे में बदल जायेगी। मजदूरों की जरूरत कम हो जायेगी। गाँव में जो भूमिहीन होगा या सीमान्त किसान होगा, वह बदहाल हो जायेगा। उसके पास पलायन करने के सिवा कोई रास्ता नहीं होगा।
तीसरा बिल – एसेंशियल कमोडिटी बिल। इसमें सरकार अब यह बदलाव लाने जा रही है कि किसी भी अनाज को आवश्यक उत्पाद नहीं माना जायेगा। जमाखोरी अब गैरकानूनी नहीं रहेगी। मतलब कारोबारी अपने हिसाब से खाद्यान्न और दूसरे उत्पादों का भंडार कर सकेंगे और दाम अधिक होने पर उसे बेच सकेंगे। हमने देखा है कि हर साल इसी वजह से दाल, आलू और प्याज की कीमतें अनियंत्रित होती हैं। अब यह सामान्य बात हो जायेगी।
झेलने के लिए तैयार रहिये। कुल मिलाकर ये तीनों बिल बड़े कारोबरियों के हित में हैं और खेती के वर्जित क्षेत्र में उनके उतरने के लिए मददगार साबित होंगे। अब किसानों को इस क्षेत्र से खदेड़ने की तैयारी है। क्योंकि इस डूबती अर्थव्यवस्था में खेती ही एकमात्र ऐसा सेक्टर है, जो लाभ में है। यह तीनों बिल पास होकर कानून बनते है तो किसानी के पेशे से छोटे और मझोले किसानों और खेतिहर मजदूरों की विदाई तय मानिये। मगर ये लोग फिर करेंगे क्या? क्या हमारे पास इतने लोगों के वैकल्पिक रोजगार की व्यवस्था है?
इसलिए भी यह प्रश्न अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है कि जब पिछले छः वर्षीय कार्यकाल के दौरान शिक्षितों को रोज़गार उपलब्ध कराने में केंद्र की मोदी सरकार पूरी तरह से विफल रही है। काबिलेगौर हो कि ये आरोप नहीं है बल्कि केंद्रीय गृह मंत्री द्वारा संसद में दिया गया जवाब है कि पिछले साढ़े चार सालों में सरकार रोज़गार के नए अवसर सृजन नहीं कर पाई है, तथा बेरोज़गारी बढ़ी है। क्या अब भी कोई शंका बाकी है। अगर है तो केंद्र सरकार की बीते छ सालों के दौरान उपलब्धियों को देख लीजिए जिससे आम जनमानस, मज़दूर वर्ग, पिछड़ा वर्ग, किसान वर्ग, देश का मध्यम वर्ग लाभवंतित हुआ हो। सत्य प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में सबके सामने है।