जनता के प्रति जवाबदेह नहीं है महासमुंद जिला प्रशासन?:पत्रकारों में गुस्सा
महासमुंद। क्या जनता के प्रति जवाबदेह नहीं है महासमुन्द का जिला प्रशासन? यह अहम सवाल मेरे जैसे सैकड़ों कलमकारों के जेहन में है। इसका जवाब छत्तीसगढ़ सरकार के मुखिया से मांगने का समय आ गया है। वह इसलिए, क्योंकि जब जन सामान्य कोरोना संकटकाल में अनेक परेशानियों से जूझ रहा है। उन्हें लॉकडाउन नियमों का पालन, आजीविका के लिए उपाय करने की चिंता है। कोरोना संक्रमण का खतरा उठाते हुए भी मीडियाकर्मी बखूबी अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। तब जिला प्रशासन के आला अधिकारियों का रवैया गैर जिम्मेदाराना भला कैसे हो सकता है?
निरंतर बन रही संवादहीनता की स्थिति से अनेक गलतफहमियां पैदा हो रही है। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के ज्यादातर साथियों का कहना है कि जिला प्रशासन के मुखिया न तो फोन कॉल अटेंड करते हैं। और सोशल मीडिया में जानकारी मांगने पर भी कोई जवाब देना उचित नहीं समझते हैं। जिला कार्यालय में भी ऐसी व्यवस्था कर रखे हैं कि मीडिया के प्रतिनिधि उनसे मिल नहीं सकते। अनेक पत्रकारों ने बताया कि आधा से पौन घंटे तक इंतजार के बाद भी मिलने का उन्हें समय नहीं दिया जा रहा है। इस तरह की शिकायतें लगातार मिल रही है। इससे जनता और शासन-प्रशासन के बीच का सेतुबंध टूटने लगा है।
समन्वय स्थापित करने में मीडिया की भूमिका अहम : जनता और शासन-प्रशासन के बीच समन्वय स्थापित करने में मीडिया की भूमिका अहम है। इसे नकारा नहीं जा सकता है। मीडिया की कड़ी टूटेगी तो सभी की दिक्कतें बढ़ना स्वाभाविक है। यहां आम आदमी परेशान हैं। गरीबों को दो वक्त की रोटी के लाले पड़ रहे हैं। रोज कमाने-खाने वाले हजारों लोग भूखे मरने के कगार पर हैं। एसी कमरे में कांच के घेरे में बैठे अफसरों की नजर में जमीनी स्तर पर सबकुछ ठीक चल रहा है। जबकि, जमीनी हकीकत इससे अलग है। इनकी तकलीफ को शासन-प्रशासन तक मीडिया ही पहुंचाती है। जिसकी अनदेखी और असहयोग से सभी परेशान हैं। जिला प्रशासन की कार्यप्रणाली से सभी वर्ग के लोग आहत हैं।
यहां लोक सेवक समझने लगे हैं खुद को खुदा : जन सामान्य के बीच यह चर्चा का विषय है कि लोकसेवक यहां खुद को खुदा समझने लगे हैं। इस स्थिति में विद्रोह होना स्वाभाविक है। मैदानी क्षेत्रों से लोक सेवकों की मनमानी की ढेरों शिकायतें मिल रही है। जनता से जुड़े मुद्दे कलमकार प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, सोशल मीडिया पर लगातार उठा रहे हैं। सूचना क्रांति के वर्तमान समय में सब कुछ बहुत तेजी से वायरल हो जाता है। बावजूद संज्ञान में लेना तो दूर मामला उजागर करने वाले को ही संदेह की नजरों से देखा जाने लगा है।
ऐसा हुआ एक ताजा मामला : सोशल मीडिया पर “महासमुन्द जिले की खबरें” व्हाट्सएप्प ग्रुप में आज एक प्रकरण वायरल हुआ। पिथौरा के तहसीलदार ने पटवारी को नोटिस दिया है, उसे एक मीडिया प्रतिनिधि ने ग्रुप में शेयर किया। जिले के इस महत्वपूर्ण ग्रुप में कल रात भी कुछ मसलों पर कलमकारों की तीखी प्रतिक्रिया आई थी। सूत्रों के अनुसार यह अफसरों को नागवार गुजरा। लॉकडाउन के मसले पर मंथन करने पुलिस और प्रशासन के अधिकारी जिला कार्यालय में एकत्र थे। तब इस व्हाट्सएप्प ग्रुप पर चर्चा हुई। और जिला प्रशासन के तीन शीर्ष अफसर एक साथ लेफ्ट हो गए।
किसी ग्रुप में रहना, हट जाना निश्चय ही संबंधित का विशेषाधिकार है। लेकिन, अहम सवाल यह है कि जनता से जुड़े मामलों पर क्या आला अधिकारी जवाबदेही से बचने का प्रयास कर रहे हैं? जब शीर्ष अफसरों का रवैय्या ऐसा नकारात्मक रहेगा, तो जमीनी अमला आम आदमी का काम कहां करने वाले हैं। बहरहाल, अधिकारियों के एक साथ ग्रुप छोड़ने से मीडियाकर्मियों से जुड़े इस ग्रुप में तरह- तरह की चर्चाएं हो रही है।
बड़ों का अनुशरण करते हैं छोटे : यह प्रकृति का नियम है कि बड़ों का अनुशरण छोटे करते ही हैं। जब तीन शीर्ष अफसर एक साथ ग्रुप से लेफ्ट हुए। तब छोटे कहां पीछे रहने वाले हैं। इस ग्रुप से सहायक जनसंपर्क अधिकारी भी लेफ्ट हो गए। अधिकारियों के नकारात्मक रवैया से रूष्ट होकर ग्रुप के एडमिन ने उन्हें अन्य ग्रुपों से भी रिमूव कर दिया। क्या ये अधिकारी किसी प्रकार की जवाबदेही से बच रहे हैं?
सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के बीच शुतुरमुर्ग वाला व्यवहार किसी के हित में नहीं है। मीडिया, प्रशासन, शासन सबकी जनता के प्रति बराबर जवाबदेही है। और मीडिया को चौथे स्तंभ का दर्जा भारतीय लोकतंत्र में ऐसे ही नहीं मिला हुआ है। यह बात खुद को खुदा समझने वाले नौकरशाह को बखूबी समझना ही चाहिए।
-आनंदराम साहू
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व प्रेस क्लब-महासमुन्द के अध्यक्ष हैं)