नई शिक्षा नीति के द्वारा देश की भावी पीढ़ी को अपने रंग में रंगने की तैयारी में मोदी सरकार : सुरेन्द्र वर्मा
- नई शिक्षा नीति के नाम पर अधिनायकवादी मोदी सरकार शिक्षा के बाजारीकरण, निजीकरण और पूंजीवादी व्यवस्था थोपने पर आमादा है
- कोरोना आपदाकाल मोदी सरकार के लिए जनविरोधी संशोधन, अध्यादेश लादने का अवसर! संघीय ढांचे और लोकतांत्रिक मूल्यों के ख़िलाफ़ मोदी सरकार!
रायपुर/01 अगस्त 2020। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता सुरेन्द्र वर्मा ने कहा है कि केंद्र की नीति, नेता, नजरिया और निष्ठा पूरी तरह से जनविरोधी है! मोदी सरकार के केवल नारे, भाषण और विज्ञापन ही लुभावने होते हैं, धरातल पर किसी को कुछ नहीं मिलता। ये बार-बार भूल जाते हैं कि देश संविधान और कानून से चलता है, जुमलों – नारों और अधिनायकवाद से नहीं l संविधान की सातवीं अनुसूची में केंद्र और राज्यों के अधिकार का बटवारा किया गया है। संघसूची, राज्यसूची और समवर्तीसूची। शिक्षा आरंभ में राज्य सूची का विषय था, जिसे 1976 में 42 संविधान संशोधन कर समवर्ती सूची में रखा गया है। तात्पर्य यह है कि शिक्षा के संदर्भ में कानून बनाने का अधिकार केंद्र और राज्य दोनों को है। सत्ता के अहंकार में चूर मोदी सरकार पूरी तरह से अधिनायक वादी रवैया दिखाने लगी है। नई शिक्षा नीति के नाम पर शिक्षा के बाजारीकरण, निजीकरण और पूंजीवादी व्यवस्था थोपने पर आमादा है।
प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता सुरेन्द्र वर्मा ने कहा है कि मोदी सरकार की कथनी और करनी में फर्क है, नीति और नियत दोनों संदिग्ध है। जिस शिक्षा नीति पर विगत 5 वर्षों से चर्चा चल रही थी। पूरे देश भर से लाखों सलाह, सुझाव और आपत्तियां दर्ज की गई थी, उनकी अनदेखी कर, राज्य सरकारों की सहमति के बिना, केंद्र द्वारा मनमानी थोपी जा रही है। शिक्षा सरकार का दायित्व और जनता का अधिकार हैl समाज का हर व्यक्ति, हर परिवार इससे सीधे तौर पर प्रभावित होगा। देश की बुनियाद तभी मजबूत होगी जब प्राइमरी और मिडिल शिक्षा के साथ-साथ उच्च शिक्षा के द्वार भी गरीब और आमजन के पहुंच के अंदर हो, पर मोदी सरकार शायद यह सोचती है कि देश का युवा पढ़ लिख जाएगा तो सवाल पूछेगा, और जवाबदेही से मोदी सरकार को नफ़रत है। ऑटोनॉमस(स्वशासी) के नाम पर कॉलेजों को विश्वविद्यालय की संबद्धता से अलग कर स्वतंत्र निकाय बनाने की बात कहीं जा रही है। अर्थात प्रबंधन के साथ-साथ वित्तीय व्यवस्था के लिए भी कॉलेजों को आत्मनिर्भर बनने के लिए कहा जा रहा है। इसका सीधा मतलब यह होता है कि पूरा खर्च विद्यार्थियों से ही वसूला जाएगा। शिक्षा कई गुना महंगी हो जाएगी। इस प्रकार से सरकार शिक्षा के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से भाग रही है। अभी केंद्र सरकार द्वारा पांचवी तक मातृभाषा में शिक्षा देने की बात कही गई है! छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा तो पहले ही आंगनबाड़ी पहली और दूसरी कक्षा के लिए पाठ्य सामग्री छत्तीसगढ़ी में प्रकाशित किया जा चुका है! छत्तीसगढ़ में तो इस साल 54 सरकारी इंग्लिश मीडियम स्कूल भी आरंभ किए गए हैं! जहां पहली से बारहवीं तक शिक्षा अंग्रेजी माध्यम में दी जाएगी! नई शिक्षा नीति की “लर्निंग बाय डूइंग” कोई नई बात नहीं है l 2009 में केंद्र की यूपीए सरकार में मनमोहन सिंह जी के नेतृत्व में शिक्षा का अधिकार अधिनियम(RTE) में इन बातों का प्रावधान पहले ही कर दिया गया था l “बस्ते का बोझ कम करना” यह भी पुरानी बात है कोई क्रांतिकारी कदम नहीं कही जा सकता! यशपाल समिति की रिपोर्ट (1993) पर यह भी पहले ही लागू है।
मोदी सरकार देश में संघीय व्यवस्था के खिलाफ और संसदीय प्रणाली को ताक पर रखकर, जनहित के मुद्दों पर बिना सदन में बहस और चर्चा के कोरोना संकटकाल की आड़ लेकर लगातार एक के बाद एक पूंजीवादी फैसले अध्यादेश के जरिए थोपने का काम कर रही है।
प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता सुरेन्द्र वर्मा ने कहा है कि पहले किसान और उपभोक्ताओं के हितों के खिलाफ “आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955” में संशोधन करके “स्टॉक लिमिट” खत्म कर जमाखोरों को संरक्षण देने कानून पास किया। भाजपा शासित राज्यों में तमाम श्रम कानूनों में श्रमिक विरोधी प्रावधान लागू किए गए! मंडी एक्ट में संशोधन कर कोचियों, बिचौलियों और जमाखोरों को संरक्षण देने किसान विरोधी निर्णय लिए गए! कोल इंडिया लिमिटेड के खदानों को निजी हाथों में सौंपने की प्रक्रिया आरंभ की गई! देश के तमाम संसाधन चंद पूंजीपतियों को सौंपने का मोदी सरकार का लगातार प्रयास जारी है! राज्यों का हक छीनने के लिए “इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल 2020′ लाया गया और अब नई शिक्षा नीति के नाम पर शिक्षा के निजीकरण का दस्तावेज थोपा जा रहा है! दरअसल मोदी सरकार के नीतियों की पैकेजिंग और मार्केटिंग तो बहुत अच्छी होती है पर वास्तव में उसका अंतिम लक्ष्य चंद पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाना ही होता है।