आज तक अपहरण डकैती चालू है
सिस्टम की नाकामी-एससी: पुलिस को विकास दुबे एनकाउंटर के बाद जिनका रूक गया विकास, कही वही तो चैलेंज दे रहे हैं क्या?
उत्तर प्रदेश में विकास दुबे के इतने केस मुकदमे होने के बावजूद पैरोल मिल जाती है, थाने में घुसकर मंत्री की हत्या तक कर देता है, लेकिन पुलिस खामोश रहती है और उस केस से बरी हो जाता है, खुलेआम उसकी वीडियो सोशल मीडिया और मीडिया में रिलीज होती है, और उसमे नाम भी नेताओं के आते है, ये तो साफ हो जाता है कि विकास का कोई नहीं बल्कि कई नेता वर्षो से विकास करते आ रहे थे, विकास दुबे का एनकाउंटर जरूर विकास का विकास करने वालों के लिए एक क्षति के रूप में देख रहे है, इसीलिए तो अब उत्तर प्रदेश में अपराधी पुलिस से खुलेआम टक्कर ले रहे है, एक के बाद एक सीरियल अपहरण हो रहे है, और अपहरण में एक केस छोड़कर बाकी बच्चों की हत्याएं कर दी जाती है।
1. पत्रकार विक्रम जोशी पुलिस की लापरवाही के कारण उनकी बच्चियों के सामने ही बदमाश गोली मार कर हत्या कर दी जाती है।
2. कानपुर पुलिस की फिर लापरवाही उजागर हुई 13 जुलाई तक बच्चा लापता रहता है, जबकि 22 जून को ही लापता होने की रिपोर्ट थाने में दर्ज करवाई गई थी, लगातार फिरौती के फोन की सूचना परिजनों द्वारा पुलिस को दी जा रही थी, फिर पुलिस के कहने पर 30 लाख रूपए फिरौती के अपहरणकर्ताओं के कहे अनुसार पहुंचाने के लिए परिजनों को कहा गया, 30 लाख रूपए भी परिवार वालों ने बदमाशों को दिए और उनके बच्चे की हत्या भी कर दी गई।
3. गोंडा में कारोबारी हरि गुप्ता के 8 साल के बेटे नमों क अपहरण कर लिया जाता हैं, फिर 4 करोड़ रूपए की फिरौती मांगी जाती है, फोन दपर महिला आरोपी परिजनों को कहती है कि विकास दुबे का मामला जानते हो कि नहीं, इस केस में पुलिस ने अपहरणकर्ताओं को गिरफ्तार करके मासूम बच्चे को जिंदा बचा लिया, हैरानी वाली बात ये है कि इस गैंग में एक महिला भी शामिल है।
4. रविवार को पान दुकान चलाने वाले से गोरखपुर के पिपराइच में महाजन गुप्ता के बेटे बलराम गुप्ता उम्र 14 वर्ष के बच्चे का अपहरण कर लिया गया, और एक करोड़ रूपए की फिरौती पान दुकान चलाने वाले से मांगी जाती है और सोमवार को बालक की हत्या कर दी जाती है, पुलिस का दावा है कि आज मंगलवार 28/7/2020 को तीन संदिग्धों को हिरासत में ले लिया जाता है।
आखिर इस सीरियल अपहरणों के पिछे कौन है, ये सवाल तो अधूरा है, छुटभैये अपराधियों को पकड़कर पुलिस अपनी पीठ-भले ही थपथपा ले, लेकिन सिस्टम पर तो सवाल उठेगा ही, इसका इलाज सिर्फ ट्रांसफर करने भर से हल नहीं निकलने वाला है, कानपुर विकास दुबे के मामले में 80 पुलिस वालों को एसआईटी ने जांच में लिया है, जो जय बापेयी की मदद करते थे,
अब तो जब आरोपी पुलिस वालों की ही हत्या पुलिस के मुूखबिरों द्वारा होगी तो आप आदमी या पत्रकार कैसे सुरक्षित रहेंगे, अब पुलिस को फेक एफआईआर लिखना बंद करके कार्यप्रणाली में बदलाव लाना ही पड़ेगा, क्योकि इसमे बगैर खादी के खेल विकास का विकास नहीं हो सकता है, विकास दुबे एनकाउंटर के बाद अब गुंडें खुलकर पुलिस को चैलेंच दे रहे है। या फिर पर्दे के पिछे खादी चैलेंज दे रही है।