पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद आरएस कपिल सिब्बल ने आज वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से मीडिया को संबोधित किया
https://www.youtube.com/watch?v=0tXFEKGUxAU
Highlights of Press Briefing 04 July, 2020
Shri Kapil Sibal, former Union Minister & MP RS, addressed the media via video conferencing today.
Shri Kapil Sibal said – They say that, “Pictures do not lie”.
Will the Prime Minister now tell the Nation:-
- Does the latest, and the first actual picture of Chinese occupation of our territory up to ‘Finger 4 Ridge’ in ‘Pangong Tso Lake’ area depict the truth on the ground? Is this Indian Territory on which construction of radars, helipad and other structures have been built by the Chinese in a brazen act of transgression?
- Have the Chinese occupied our territory in Galwan Valley, including ‘Petrol Point – 14’, where our 20 Jawans of 16 Bihar Regiment made the supreme sacrifice? Has China also occupied Indian territory in ‘Hot Springs’?
- Has China occupied our territory up to ‘Y-Junction’ (18kms. inside the LAC) in the ‘Depsang Plains’ threatening India’s strategic ‘D.B.O. Airstrip’, which is the lifeline for our military supplies to ‘Siachen Glacier’ and ‘Karakoram Pass’?
- Did former Prime Ministers of India, Smt. Indira Gandhi and Lal Bahadur Shastri not visit the forward locations to boost the morale of our soldiers? Did Pandit Jawahar Lal Nehru also not visit our soldiers in forward locations in NEFA in 1962 to boost their morale? But it appears that our Prime Minister stayed 230 kms. away in ‘Nimu, Leh’.
- Isn’t it correct that the local Councillors of Ladakh, including BJP Councillors, submitted a memorandum to Prime Minister Modi, in February 2020, about the capture of our land by China? What action did the Prime Minster take? Had the Prime Minister acted, wouldn’t we have been able to pre-empt the brazen Chinese transgressions?
The times warrant India to look ‘eye-to-eye’ at China and unequivocally tell them to retreat from their illegal and brazen occupation of Indian Territory. Mr. Prime Minister, this is the only ‘Raj Dharma’ that you must follow.
श्री कपिल सिब्बल ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि मुझे वो दिन याद है 2014 से पहले और 2014 के बाद भी, प्रधानमंत्री जी देश की जनता को दिलासे देते रहे, वो गाना है – ‘सुहाना सफर और ये मौसम हंसी’, वो सुहाने सफर के सपने दिखाते रहे और हंसी मौसम के भी सपने दिखाते रहे। ये भी कहते रह गए कि जब यूपीए सरकार थी और उस जगह पर चीन ने प्रयास किया हमारी जमीन पर कब्जा करने का, तो प्रधानमंत्री जी अक्सर कहते थे कि हम उनको लाल आंख दिखाएं। तो मौसम हंसी तो है नहीं, सुहाना सफर भी नहीं रहा और आज हम 2020 पर पहुंचे हैं और हमें डर है कि हम ना खो जाएं कहीं, हमें डर है कि हम खो ना जाएं कहीं, क्योंकि जो दृश्य हमारे सामने हैं, वो बहुत ही गंभीर है, खासतौर पर जो स्थिति सरहद पर है, लद्दाख में है, वो बहुत गंभीर है।
इंसान कभी-कभार गलत बयानी कर जाता है, उसको फिर स्वीकार भी नहीं करता। स्पष्टीकरण भी नहीं देता, उसकी क्या वजह है, क्या वजह नहीं है, इसके बारे में तो मैं कुछ नहीं कहूंगा, हमारी पार्टी कुछ नहीं कहेगी, लेकिन कभी ऐसा भी होता है कि गलत बयानी हो भी जाए, तो वो पकड़ी भी जाती है। इंसान तो गलत कह सकता है, पर कभी-कभार तस्वीर लेकिन गलत नहीं कहती, इमेज गलत नहीं कहती। तो उस इमेज के बारे में हम बात करेंगे, ‘गार्डियन’ के न्यूज पेपर ने आज दो इमेज अपने अखबार में छापी हुई हैं और जो सैटेलाइट के द्वारा ली गई हैं।
पैंगोंग सो लेक एरिया, वहाँ दो तस्वीरें हैं, एक 22 मई की तस्वीर है और एक 23 जून की तस्वीर है। तो वो अपने आपमें एक कहानी आपको दिखाती है कि किस तरह से चीनियों ने हमारी मातृभूमि पर, हमारी जमीं पर ‘लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल’ पर हमारी तरफ उन्होंने कब्जा कर रखा है। तो सबसे पहले तो हम आपको 22 मई की तस्वीर, सैटेलाइट इमेज जो गार्डियन न्यूज पेपर में छपी वो आपको दिखाना चाहते हैं (इमेज दिखाते हुए, एनेक्सर-1)– यहाँ देखिए कि कोई इमारतें नहीं हैं, कोई बिल्डिंग नहीं हैं, कोई स्ट्रक्चर नहीं है, कोई बंकर नहीं है, कोई हेलीपैड नहीं है, कोई हेलीपैड टॉवर नहीं है, ये है 22 मई की तस्वीर। अब आ जाईए 23 जून की सैटेलाइट इमेज, यहाँ साफ दिखता है कि किस तरह से वहाँ चीनियों ने कब्जा कर रखा है और किस तरह से वहाँ इमारतें बनी हुई हैं। अब हम 5 सवाल प्रधानमंत्री जी से पूछना चाहते हैं और वो देश को बता दें क्योंकि दोनों तस्वीरें आपके सामने हैं, जब मैं सवाल पूछूँगा, तो दोनों तस्वीरें वहाँ दिखनी चाहिएं और दोबारा देख लीजिए और अंतर आप देख रहे हैं, पहचान रहे हैं, समझ रहे हैं।
पहला सवाल हमारा प्रधानमंत्री जी से ये है कि क्या चीनियों ने हमारी जमीन पर फिंगर 4 रिज तक पैंगोंग सो लेक एरिया पर कब्जा कर रखा है या नहीं?
क्या ये वास्तविकता नहीं है, आप इसके बारे में बताईए, देश की जनता को बताईए? क्या ये हिंदुस्तान की मातृभूमि नहीं है, इस बारे में देश की जनता को बताईए? क्या ये रेडार जो हैं, जो वहाँ दिख रहे हैं, क्या ये कंस्ट्रक्ट नहीं हुए, इस बारे में बताईए, क्या हेलीपैड वहाँ नहीं हैं, हेलीपैड टॉवर नहीं है, इसके बारे में बताईए? बाकि जो बिल्डिंग वहाँ बनी हुई हैं, उसके बारे में बताईए और क्या ये अतिक्रमण नहीं है, चीन का हमारी जमीं के ऊपर और क्या कब्जा नहीं है, इस बारे में बताईए?
क्या ये वास्तविकता नहीं है प्रधानमंत्री जी? ये पहला सवाल है हमारा।
दूसरा सवाल – क्या चीनियों ने हमारी जमीं पर जो गलवान वैली में है, जिसमें पेट्रोल प्वाइंट 14, जहाँ हमारे 19 जवान और एक कर्नल शहीद हुए, उन्होंने अपनी जान की कुर्बानी दी, क्या वो चीन के कब्जे में नहीं है? क्या उन्होंने हॉट स्प्रिंग पर कब्जा नहीं कर रखा?
प्रधानमंत्री जी हम आपसे आग्रह करते हैं कि जो वास्तविकता है, जो स्थिति है, जो जमीं पर स्थिति है, इस देश को बताईए। लाल आंख दिखाने की बात तो बाद में बात करेंगे, लेकिन वास्तविकता तो बताईए।
तीसरा सवाल – क्या चीनियों ने गलवान वैली, चीनीयों ने वाई जंक्शन, जो 18 किलोमीटर लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल के अंदर हमारी जमीं पर है, डेपसांग प्लेन पर क्या उन्होंने वहाँ कब्जा नहीं कर रखा और क्या इस कब्जे के द्वारा जो हमारा दौलत बेग ओल्डी पर एयर स्ट्रीप है, क्या उस पर खतरा नहीं है, क्योंकि उसी एयर स्ट्राइक के द्वारा हम अपने जवानों को चाहे वो सियाचिन ग्लेशियर पर हों, चाहे काराकोरम पास पर हों, हम उनको सारी सप्लाई उसी एयर स्ट्रीक से देते हैं, मगर वाई जंक्शन पर चीनी फौजें बैठी हुई हैं, वो लगभग 20-25 किलोमीटर दूरी पर हैं। तो क्या उससे खतरा साफ जाहिर नहीं है, ये मैंने पहले भी आपको दिखाया था, क्या उससे साफ खतरा जाहिर नहीं होता? क्योंकि उनकी आर्टिलरी फायर के द्वारा हमारे डीबीओ अड्डे हवाई को खतरा है, जहाँ हमारी सी 130 ट्रांसपोर्ट प्लेन अब पहुंच सकते हैं, ताकि हमारे जवान, जो सियाचिन में है, जो काराकोरम पास पर हैं, उनको वहाँ सप्लाई मिल सकती है, तो क्या सच नहीं है कि वाई जंक्शन पर चीनियों को कब्जा है?
चौथा सवाल – हमारी पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी, श्री लाल बहादूर शास्त्री हमारे जवानों का मनोबल बढ़ाने के लिए फॉरवर्ड लोकेशन पर गए थे। हमारे पूर्व प्रधानमंत्री फिर से पंडित जवाहरलाल नेहरु जी भी अपने जवानों से मिलने के लिए नेफा में 1962 में गए, उनका मनोबल बढ़ाने के लिए। लेकिन जब आपने अपने जवानों को संबोधित किया अभी कल शुक्रवार को, तो आप 230 किलोमीटर दूर नीमू-लेह पर थे। कहाँ वो नजदीकियां नेहरु जी की, कहाँ वो नजदीकियां इंदिरा जी की और कहाँ वो दूरियां आपकी। मैं इस पर कोई सवाल नहीं पूछूंगा, केवल इतना ही कहूंगा कि ये दूरियां छोड़ दीजिए। देश की जनता को बता दीजिए कि असलियत क्या है और अगर मनोबल बढ़ाना है, तो नजदीकियां लानी पड़ेंगी।
पांचवा सवाल- क्या ये सही नहीं है कि लद्दाख के जो लोकल काउंसर है, उनमें से बीजेपी के भी काउंसलर हैं, उन्होंने एक याचिका, एक रेप्रेंजेंटेशन प्रधानमंत्री जी को फरवरी, 2020 में दी थी? जिसमें उन्होंने साफ कहा था कि चीनी हमारी जमीं पर कब्जा कर रहे हैं और कब्जा कर चुके हैं। आपने उस रेप्रेंजेंटेशन को लेकर क्या कदम उठाए? आपने क्या लाल आंख दिखाई उस समय और अगर नहीं तो आप चुप क्यों रहे? आपने क्या इंस्ट्रक्शन दी अपनी फौजियों को कि क्या करना चाहिए? आपने कोई मीटिंग्स बुलाई, आपने इसके बारे में चर्चा की? ये फरवरी की बात है, आज तो हम जुलाई में बैठे है और अगर आप उस समय ठोस कदम उठाते, तो निश्चित रुप से हम अपनी जमीं की हिफाजत कर पाते। आपको ये बताना होगा इस देश को कि फरवरी से लेकर मई-जून में आपने क्या किया, क्योंकि मई की तस्वीर तो मैंने आपको दिखा दी, उस समय तो वहाँ कब्जा नहीं था चीनियों का।
असलियत तो ये है कि वहाँ के लोग क्योंकि आपकी तो इंटेलिजेंस एजेंसी जो हैं, आप हम पर आरोप लगाते थे, जब यूपीए की सरकार थी कि हमारी इंटेलिजेंस फैलियर रहा, तो मैं पूछना चाहता हूं कि जब वहाँ आपके काउंसलर बैठे हुए हैं, वहाँ जो चरवाहे हैं, वो कहते रहे कि हमारी जमीं पर हम चरवाहे अपने जानवरों को नहीं ले जा सकते। हमारी जो भेड़- बकरियां हैं, उनको हम नहीं ले जा सकते, जहाँ हम पहले ले जा सकते थे। ये तो इंटेलिजेंस यूनिट को पता होगा हिंदुस्तान की। इस बारे में क्या असलियत है, ये तो हमें बताईए? क्योंकि कई ऐसे लोग हैं, जिन्होंने आज गार्डियन पेपर में भी अपना नाम देते हुए बताया है और एक नामग्याल दुरबुक है, जो वहाँ 45 साल से हैं, उन्होंने कहा कि अगर कोई कहता है कि हिंदुस्तान की किसी जमीं पर कब्जा नहीं हुआ, तो वो गलत है। सोनम वांगचुक हैं, जो वहाँ की एक इंजिनियर हैं, वो कहते हैं कि वो एक चरवाहे हैं, वो अपनी बकरियों को पुराने चारागाह पर लेकर नहीं सकते। वहाँ के इनके अपने काउंसलर हैं, Urgain Chodon, जो बीजेपी के काउंसलर हैं, वो कोयल गांव के रहने वाले हैं, वो खुद कहते हैं कि चीनीयों ने हमारी जमीं पर कब्जा किया हुआ है, वहाँ पर मशीनरी उन्होंने लगा दी है और अपने अर्थमूवर ले आए हैं, अपने बाकी भी इक्विपमेंट हैं, वो भी ले आए हैं। ये तो उनके अपने काउंसलर कहते हैं आज और एक ताशी तैपाल, जो एक रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर हैं, वो खुद कहते हैं कि मैं जब यहाँ पर पोस्टिंग हुई थी, तो हम खुद घौड़ों पर गलवान वैली में जाते थे और चीन का कोई कब्जा नहीं था। तो ये स्थिति है और आपने ऑल पार्टी मीटिंग में लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि चीन हमारी जमीं पर नहीं आया है, ना आया था और आज ना वहाँ है, ना किसी पोस्ट पर किसी का कोई कब्जा है और ना आपने आज तक चीनियों को लाल आंख दिखाई। तो अपना राजधर्म निभाईए प्रधानमंत्री जी, वक्त आ गया है कि राजधर्म निभाईए और हमारी जमीं की रक्षा कीजिए। पर सबसे पहले जो असलियत है, वो देश की जनता को स्पष्ट रुप से बता दीजिए।
On a question about Prime Minister’s statement that today’s India is not of India 1962, and the era of expansionism is over, what do you have to say, Shri Sibal said- You know, quite frankly and I thought that this question may come up. Every time, we raised this issue, the present Government and their leaders asked us about 1962, but, let me tell you something about 1962 that the people of this country don’t know, what was Pt. Nehru’s position viz a viz Zhou Enlai in 1962. I have prepared a short statement, can you put it up on screen, please.
(Statement was shown on the screen…) (Annexure -2)
I want to tell you about some facts that perhaps the people of India don’t know, because people don’t even know about the origin of the ‘Line of Actual’ Control. How does this term come about? While they will put on the screen, let me just tell you something that the term line of Actual control was coined by the Chinese premier Zhou Enlai in 1956, then he repeated it in 1959, before the 1962 war. At that time Zhou Enlai sent a letter to Pt. Nehru asking India to accept the 1959 Chinese claim and said that China was willing to withdraw 20 kilometers from this place. This is a letter from Zhou Enlai to Pt. Nehru. What did Pt. Nehru’s response say, what did he say up on the proposal, he said that this proposal is nothing short of victors dictates. Nehru Ji said “There is no sense or meaning in the Chinese offer to withdraw twenty kilometers from what they call ‘line of actual control’. What is this ‘line of control’? Is this the line they have created by aggression since the beginning of September?”
That was what Nehru Ji said and the Prime Minister doesn’t talk about Chinese aggression and occupation on our territory that is the difference between 1962, when we were not a nuclear power, when we didn’t have modern army, when we didn’t have the wherewithal, fighter planes, our Naval Defence Service.
We are today a modern nation. We are a warfare machinery. We are a nuclear power. (1962) that was 12 years after we became independent, what were we trying to do, we were trying to redistribute the land, abolish the “Zamindari System” so that poor people would get land. Our focus was economic development.
उस समय जब ये बात उठी और 1962 में जब चीन ने हमला करके और हमारी साथ जो जंग की, ये जो लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल की बात है, वो सबसे पहले प्रिमियर लाई ने कहा था कि एक लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल है, हमने कभी इस बारे में बात नहीं की, 1956 में Premier Zhou Enlai ने कहा और फिर 1959 में Premier Zhou Enlai ने दोबारा इसके बारे में बात की और जब 1962 में उन्होंने हमारी जमीं पर कब्जा किया तो उन्होंने नेहरु जी को चिट्ठी लिखी। नेहरु जी को चिट्ठी लिखी और उसमें ये कहा कि आप ये लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल मान लीजिए और हम इतना कह सकते हैं कि हम इस लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल के 20 किलोमीटर पीछे हट जाएंगे और ये बात आप हमारी मान लीजिए। तब नेहरु जी ने कहा कि मैं आपकी बात नहीं मानता, ये क्या मतलब हुआ लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल का, हम नहीं मानते आपकी बात। ये तो आपने हमारे ऊपर हमला करके ये हमारे ऊपर थोपा। फिर नेहरु जी ने एक और बात की And I will read it to you and this is in quotes “The demand for India to accept the Chinese 1959 line is a demand to which India will never submit, whatever the consequences and however long and hard the struggle may be,”
Paradoxically, the Chinese 1959 line clearly depicted the entire Galwan Valley in India. It was only on June 16, 2020 (a day after the fatal clashes) that China formally laid claim for the first time ever to the “entire Galwan Valley.”
तो नेहरु जी ने उस समय एक स्टेटमेंट दी, उन्होंने कहा कि हम कभी ये नहीं मानेंगे कि 1959 की जो लाइन है। वो लाइन चीन कहते हैं लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल है, हम उसको कभी स्वीकार नहीं करेंगे और कभी सब्मिट नहीं करेंगे। जितनी देर भी हमें चाहे कितने साल भी लग जाएं, ये बात हम कभी नहीं मान सकते, हम संघर्ष करते रहेंगे। वो जो लाइन ऑफ एक्चुअल 1959 की है, उसमें गलवान वैली हिंदुस्तान में दिखाया गया है और 16 जून, 2020 के बाद अगले दिन वो गलवान वैली चीनी कहते हैं हमारे कब्जे में है। उस पर हमारा कब्जा है, ये चीन आज कहता है, जो 1959 में उन्होंने कभी नहीं कहा। ये थे पंडित नेहरु 1962 के, ये हैं प्रधानमंत्री जी आज के जो बात करने को तैयार नहीं। जो लाल आंख दिखाने को तैयार नहीं, जो एक पब्लिक स्टेटमेंट देने को तैयार नहीं कि हम कब्जा कभी नहीं मानेंगे, चाहे हमें कितने संघर्ष क्यों ना करना पड़े। हम चीन का गलवान वैली में कंट्रोल नहीं मानेंगे, हम वाई जंक्शन कंट्रोल नहीं मानेंगे, हम पैंगोग सो लेक का कब्जा नहीं मानेंगे, हम फिंगर 4 और 8 का कब्जा नहीं मानेंगे। प्रधानमंत्री जी कहिए, देश को कहिए ताकि चीन को आपका बयान पहुंच जाए, सारे विश्व में पता लगना चाहिए कि हिंदुस्तान की जनता हमारे प्रधानमंत्री के साथ खड़ी हुई है, हमारे जवानों के साथ खड़ी हुई है। आप झिझकिए मत, हम आपके साथ हैं, हम चाहते हैं कि आप ऐसा बयान दें, ताकि सारे देश का मनोबल, सेना का मनोबल बढ़े और विश्व में ये संदेश चला जाए कि चीनीयों का कब्जा हम कभी नहीं होने देंगे।
एक अन्य प्रश्न पर कि प्रधानमंत्री जी ने कल कहा कि ये जो दौर है वो विस्तारवाद का नहीं है विकासवाद का है, चीन की तरफ इशारा था, पर अभी तक भारत का जो शीर्ष नेतृत्व है, वो चीन को सीधा नाम क्यों नहीं ले रहा है? श्री सिब्बल ने कहा कि मुझे तो समझ नहीं आ रहा है कि हमारे प्रधानमंत्री जी इशारों-इशारों में बात क्यों कर रहे हैं? सारे विश्व को मालूम है कि चीन का रवैया क्या रहा, इन्हें भी मालूम होना चाहिए, साउथ चाईना सी में वो क्या कर रहे हैं, सभी को मालूम है। नेपाल में किस तरह से वहाँ अपना जो इनफूल्वेंस, दबाव बढ़ा रहे हैं, इस बात के बारे में मालूम है। पड़ोसी देशों में कैसे दवाब बढ़ा रहे हैं, हमें इस बात के बारे में मालूम है, अफ्रीका में कैसे अपना दवाब बढ़ा रहे हैं, हमें इस बात के बारे में मालूम है। कैसे उन्होंने अपने मन में ये तय कर रखा है कि अरुणाचल उनका है, इस बात के बारे में हमें मालूम है, कैसे वो तवांग में बैठना चाहते हैं, इस बात के बारे में हमें मालूम है। कैसे चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर बना रहे हैं सियाचिन के द्वारा, तो ये हमें मालूम है, प्रधानमंत्री को मालूम है, 2014 में भी मालूम था। तो 6 साल प्रधानमंत्री जी क्या कर रहे थे? जब ये सब मालूम था, हमारी सरहद पर खतरा था, जब हमें मालूम था कि ऐसा चीन करेगा, जब वहाँ हमारे चरवाहे बता रहे थे, जब इनके काउंसलर चिट्ठी लिख रहे थे, 20 फरवरी को इन्होंने रेप्रेंजेंटेशन दिया तो प्रधानमंत्री जी आज आप इशारों-इशारों में बात क्यों कर रहे हैं? आप वास्तविकता बताईए ना, साफ बताईए हमारे देश को और चीन को बता दीजिए कि हम ये नहीं मानेंगे।
एक अन्य प्रश्न पर कि कांग्रेस पार्टी लगातार सरकार पर सवाल खड़े कर रही है, लेकिन भाजपा द्वारा साफ तौर से कहा जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी के बयान ऑक्सिजन देते हैं देश के दुश्मनों को, बीजेपी नेता मुख्तार अब्बास नक्वी ने राहुल जी पर निशाना साधा है? श्री सिब्बल ने कहा कि मैं आपसे पूछना चाहता हूं जरा भाजपा से पूछ लीजिए, प्रधानमंत्री जी से भी पूछ लीजिए कि बयानबाजी तो तब हुई ना जब उन्होंने कब्जा कर लिया, उससे पहले तो हम कोई बयानबाजी नहीं कर रहे थे। तो ये ऑक्सीजन कैसे मिली चीन को, हमने तो कोई बयानबाजी की नहीं। ये ऑक्सीजन क्यों मिली, क्योंकि आपने सरहद की हिफाजत नहीं की। हमारी बयानबाजी से कोई ऑक्सीजन नहीं मिली उन्हें और आज भी कोई ऑक्सीजन नहीं दे रहा है। ये तो आपकी वजह से, आपके चुप होने की वजह से, आपकी निगरानी नहीं करने की वजह से चीन को ऑक्सीजन मिली है। आप गलत बयानी कर रहे हैं। देश के लिए आपका कर्तव्य है, आपने संविधान की शपथ ले रखी है, आपका कर्तव्य है कि आप देश को बताएं कि चीन कहाँ पर बैठा है, ताकि सारे देश को पता लगे और पूरा देश आपके साथ खड़ा हो जाए, सारी सेना आपके साथ खड़ी हो जाए, सारे देश का मनोबल बढ़े। ये बता दीजिए आप चीन को कि हम ये बात कभी नहीं मानेंगे, उनका कब्जा कभी हम स्वीकार नहीं करेंगे।
एक अन्य प्रश्न पर कि सारे देश जिनके साथ चीन की तनातनी चल रही है, ये सीधा हमला नहीं कर रहे हैं, जिस तरह से हमारे कुछ एरिया पर कब्जा हुआ है, इसका कोई जवाब ना देना क्या ये चीन के सामने सरेंडर कर देना है? श्री सिब्बल ने कहा कि सरेंडर की बात नहीं है, जो आपने बातें कही, वो बिल्कुल सही हैं, इसी वजह से हमें निगरानी रखनी चाहिए थी हमारे बॉर्डर पर, खासतौर से लद्दाख और बाकी जगहों पर। ये एक संकेत देता है कि चीन का रवैया कई देशों के प्रति अलग हो चुका है। एक नए दौर के साथ चीन आगे बढ़ रहा है, ये तो हमें सब मालूम है, वर्षों से मालूम है, तो जो हमारी सरकार यहाँ बैठी हुई है, प्रधानमंत्री जी को ये मालूम होना चाहिए था कि चीन के रवैये के बदलने की वजह से हमारी सरहद पर खतरा हो सकता है, खासतौर से लद्दाख के एरिया में। क्योंकि वहाँ पर हमारा बड़ा स्ट्रैटेजिक प्रेजेंस है, तो उस स्ट्रैटेजिक प्रेजेंस की वजह से हमें खतरा होगा तो हमारा क्या होगा। इसलिए दौलत बेग ओल्डी की हवाई पट्टी है, वो सबसे ज्यादा स्ट्रैटेजिक है, इन सब बातों को सामने रखकर हमें पहले कुछ कदम उठाने चाहिए थे। चीन का रवैया देखते हुए, ये बात उठती है, इसका कोई जवाब नहीं। पहले तो वास्तविकता देखिए, सरकार में हम तो नहीं हैं, सरकार में हम होते तो हम कहते कि क्या करना है, क्या नहीं करना है, ये तो मिलिट्री स्ट्रैटेजी की बात है, ये तो पॉलिटिकल स्ट्रैटेजी की बात है, लेकिन सबसे पहले वास्तविकता जो है, वो तो बतानी चाहिए ना देश को संबोधित करके।
एक प्रश्न पर कि कल जैसे ही प्रधानमंत्री की स्पीच हुई लद्दाख में तो उसके बाद पार्टी की तरफ से या कई लोगों ने सवाल पूछा कि चीन का नाम क्यों नहीं लिया तो बीजेपी के नेताओं का ये कहना था कि पूरी दुनिया को पता चल गया कि नरेन्द्र मोदी ने किसके बारे में बात कही, क्या उन्होंने सीरिया के लिए बात कही, क्या उन्होंने श्री लंका के लिए बात कही, तो फिर बार-बार ये पूछना कि उन्होंने चीन का नाम क्यों नहीं लिया क्योंकि शब्द में इतनी ताकत होती है कि मैं बिना आपका नाम लिए ही आपको अपनी बात समझा सकता हूँ, क्या कहेंगे, श्री सिब्बल ने कहा कि हाँ, दो बातें मैं इसका उत्तर दो तरीके से दूँगा कि जब 1962 में चीन ने हमला किया युद्ध हुआ, तो क्या नेहरू ने चीन का नाम नहीं लिया था? लिया था न। प्रधानमंत्री जी क्यों झिझक रहे हैं? पहली बात तो ये। दूसरी बात ये कि प्रधानमंत्री जी ने तो चीन की बात ही कर दी ऑल पार्टी को संबोधित करते हुए तो उनका तो कोई कब्जा ही नहीं है तो वो भी क्या इशारे-इशारे में किया था, क्या संदेश देना चाहते थे वो चीन को, जब उन्होंने संबोधित किया और कहा कि उनका कोई कब्जा नहीं है, न था, न है, न कोई इंडियन पोस्ट से कब्जा है, तो कौन सा इशारा करना चाहते थे, मुझे तो समझ नहीं आया।
अरे भाई, चीन तो हमलावर है। ये कहना कि उन्होंने हमला ही नहीं किया, हमारी जमीन पर कब्जा ही नहीं किया, इसके पीछे मन की बात क्या थी, ये मैं नहीं जानता, मैं तो दिल की बात करता हूँ, उसके पीछे मन की क्या बात थी, प्रधानमंत्री जी बता दें और झिझक क्या है ये बताने में कि चीन ने कब्जा कर रखा है, जब वो कल गए थे। झिझक किस बात की थी कि अगर कह देते तो क्या हो जाता? अब न वो लाल आँख दिखाते हैं, न वो चीन का नाम लेते हैं, न वो सही तरीके से निगरानी हुई और आरोप हम पर लगाते हैं कि हमारी वजह से, अरे भैया हमने तो वो बयानबाजी ही नहीं की थी, वो तो जब कब्जा हो चुका तो हमने सवाल पूछने शुरु किए क्योंकि आपने कहा कि कोई कब्जा हुआ ही नहीं है।