मनरेगा के सम्बंध में तथ्यों की अनदेखी कर कौशिक ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा – कांग्रेस
कौशिक छुपा रहे रमन सरकार में साल में सिर्फ 28 दिन मनरेगा का काम मिलता था
रायपुर/29 मई 2020। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक द्वारा मनरेगा मजदूरों के संबंध में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पत्र लिखे जाने पर कांग्रेस ने कहा कि कौशिक को पत्र लिखने के पहले आंकड़ो का अध्ययन कर लिए होते तो उन्हें पत्र लिखने की जरूरत ही नही पड़ती। कांग्रेस संचार विभाग के सदस्य और प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि कौशिक ने राजनैतिक वाहवाही लेने और मजदूरों की झूठी संवेदना लेने तथ्यों को बिना देखे या जानबूझकर अनदेखी कर पत्र लिखा है। भाजपा की तत्कालीन रमन सरकार ने मनरेगा के कार्य दिवस को 100 से बढ़ाकर 150 जरूर किया था लेकिन 50 दिन की यह बढ़ोत्तरी सिर्फ कागजों तक सीमित थी। हकीकत में रमन सरकार वर्ष में सिर्फ 26 से 28 दिन ही काम दे पाती थी। इसके लिए सीएजी ने रमन सरकार को कटघरे में खड़ा किया था।
भाजपा के रमन सिंह के कार्यकाल में जब मनरेगा के काम का राष्ट्रीय औसत कार्य दिवस वर्ष में 42 दिन का था तब छत्तीसगढ़ मात्र 28 दिन ही काम उपलब्ध करवा पाता था।
प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि कोरोना काल मे जब सारा देश मजदूरों को रोजगार दे पाने में असफल साबित हुआ है, ऐसे समय भी देश मे मनरेगा के तहत मिलने वाले कुल रोजगार का 24 प्रतिशत अकेले छत्तीसगढ़ दे रहा है। राज्य और देश की जनसंख्या के हिसाब से तुलनात्मक अध्ययन करने पर यह आंकड़े खुद गवाही दे रहे कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और कांग्रेस सरकार मजदूरों को रोजगार देने के लिए न सिर्फ गम्भीर हैं धरातल पर इसके सकारात्मक परिणाम भी दिख रहे हैं।
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि लॉक डाउन 2 के समय जब केंद्र सरकार सहित देश की अन्य राज्य सरकारें अनिर्णय की स्थिति में थी तब छत्तीसगढ़ ने सोशल डिस्टेंसिग का पालन कर मनरेगा के काम खोल दिया था।
संकट के समय छत्तीसगढ़ ने मनरेगा में काम खोल कर पूरे प्रदेश को एक नही राह दिखाई है। केंद्र सरकार ने मनरेगा के लिये चालीस हजार करोड़ रू. का अलग प्रावधान करने का निर्णय भी छत्तीसगढ़ सरकार के द्वारा मनरेगा से रोजगार देने की सफलता को देख कर ही लिया है।
आकड़े और तथ्य बता रहे है कि नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक के द्वारा मुख्यमंत्री को लिखा गया पत्र सिर्फ और सिर्फ राजनीति प्रेरित है। उनकी मंशा मजदूरों के हित साधन की होती तो वे केंद्र को पत्र लिख राज्य के लिए मनरेगा के आबंटन को बढ़ाने और लंबित भुगतानों को शीघ्र करने की वकालत करते।